कहानी संग्रह >> गुप्त धन-2 (कहानी-संग्रह) गुप्त धन-2 (कहानी-संग्रह)प्रेमचन्द
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प्रेमचन्द की पच्चीस कहानियाँ
यकायक मुझे ऐसा मालूम हुआ कि मेरे सामने से किसी चीज़ की परछाई-सी निकल गयी। पहले तो मुझे ख़याल हुआ कि कोई जंगली जानवर होगा लेकिन बिजली की एक चमक ने यह ख़याल दूर कर दिया। वह कोई आदमी था, जो बदन को चुराये पानी में भीगता हुआ एक तरफ़ जा रहा था। मुझे हैरत हुई कि इस मूलसाधार वर्षा में कौन आदमी बारक से निकल सकता है और क्यों? मुझे अब उसके आदमी होने में कोई सन्देह न था। मैंने बन्दूक सम्हाल ली और फ़ौजी कायदे के मुताबिक पुकारा– हाल्ट, हू कम्स देअर? फिर भी कोई जवाब नहीं। कायदे के मुताबिक तीसरी बार ललकारने पर अगर जवाब न मिले तो मुझे बन्दूक दाग देनी चाहिए थी। इसलिए मैंने बन्दूक हाथ में लेकर ख़ूब जोर से कड़ककर कहा– हाल्ट, हू कम्स देअर? जवाब तो अबकी भी न मिला मगर वह परछाई मेरे सामने आकर खड़ी हो गयी। अब मुझे मालूम हुआ कि वह मर्द नहीं औरत है। इसके पहले कि मैं कोई सवाल करूं उसने कहा– सन्तरी, खुदा के लिए चुप रहो। मैं हूँ लुईसा।
मेरी हैरत की कोई हद न रही। अब मैंने उसे पहचान लिया। वह हमारे कमाण्डिंग अफसर की बेटी लुईसा ही थी। मगर इस वक़्त इस मूसलाधार मेंह और इस घटाटोप अंधेरे में वह कहाँ जा रही है? बारक में एक हज़ार जवान मौजूद थे जो उसका हुक्म पूरा कर सकते थे। फिर वह नाजुक बदन औरत इस वक़्त क्यों निकली और कहाँ के लिए निकली? मैंने आदेश के स्वर में पूछा– तुम इस वक़्त कहाँ जा रही हो?
लुईसा ने विनती के स्वर में कहा– माफ करो सन्तरी, यह मैं नहीं बता सकती और तुमसे प्रार्थना करती हूँ यह बात किसी से न कहना। मैं हमेशा तुम्हारी एहसानमन्द रहूँगी।
यह कहते-कहते उसकी आवाज़ इस तरह काँपने लगी जैसे किसी पानी से भरे हुए बर्तन की आवाज़।
मैंने उसी सिपाहियाना अन्दाज़ से कहा– यह कैसे हो सकता है। मैं फौज का एक अदना सिपाही हूँ। मुझे इतना अख्तियार नहीं। मैं कायदे के मुताबिक आपको अपने सार्जेन्ट के सामने ले जाने के लिए मजबूर हूँ।
‘लेकिन क्या तुम नहीं जानते कि मैं तुम्हारे कमाण्डिंग अफ़सर की लड़की हूँ?
मैंने ज़रा हँसकर जवाब दिया– अगर मैं इस वक़्त कमाण्डिंग अफ़सर साहब को भी ऐसी हालत में देखूं तो उनके साथ भी मुझे यही सख्ती करनी पड़ती। क़ायदा सबके लिए एक-सा है और एक सिपाही को किसी हालत में उसे तोड़ने का अख़्तियार नहीं है।
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