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गुप्त धन-2 (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :467
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8464

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प्रेमचन्द की पच्चीस कहानियाँ


मैं उसकी बेचारगी पर दिल में खुश होकर बोला– जो खुद संगदिल हो उसे दूसरों की संगदिली की शिकायत करने का क्या हक़ है?

लुईसा ने गम्भीर स्वर में कहा– मैं बेरहम नहीं हूँ किरपिन, खुदा के लिए इन्साफ़ करो। मेरा दिल दूसरे का हो चुका, मैं उसके बगैर जिन्दा नहीं रह सकती और शायद वह भी मेरे बगैर जिन्दा न रहे। मैं अपनी बात रखने के लिए, अपने ऊपर नेकी करने वाले एक आदमी की आबरू बचाने के लिए अपने ऊपर जर्बदस्ती करके अगर तुमसे शादी कर भी लूँ तो नतीजा क्या होगा? ज़ोर-जबर्दस्ती से मुहब्बत नहीं पैदा होती। मैं कभी तुमसे मुहब्बत न करूँगी…

दोस्तों, अपनी बेशर्मी और बेहयाई का पर्दा फ़ाश करते हुए मेरे दिल को बड़ी सख्त तकलीफ़ हो रही है। मुझे उस वक़्त वासना ने इतना अन्धा बना दिया था कि मेरे कानों पर जूँ तक न रेंगी। बोला– ऐसा मत ख्याल करो लुईसा। मुहब्ब्त अपना असर ज़रूर पैदा करती है। तुम इस वक़्त मुझे न चाहो लेकिन बहुत दिन न गुज़रने पायेगे कि मेरी मुहब्बत रंग लायेगी, तुम मुझे स्वार्थी और कमीना समझ रही हो, समझो, प्रेम स्वार्थी होता है ही है, शायद वह कमीना भी होता है। लेकिन मुझे विश्वास है कि यह नफरत और बेरुखी बहुत दिनों तक न रहेगी। मैं अपने जानी दुश्मन को छोड़ने के लिए ज़्यादा से ज़्यादा क़ीमत लूँगा, जो मिल सके।

लुईसा पंद्रह मिनट तक भीषण मानसिक यातना की हालत में खड़ी रही। जब उसकी याद आती है तो जी चाहता है गले में छुरी मार लूँ। आख़िर उसने आँसूभरी निगाहों से मेरी तरफ़ देखकर कहा– अच्छी बात है किरपिन, अगर तुम्हारी यही इच्छा है तो यही सही। तुम जो क़ीमत चाहते हो, वह मैं देने का वादा करती हूँ। मगर खुदा के लिए इस वक़्त जाओ, मुझे ख़ूब जी भरकर रो लेने दो।

यह कहते-कहते कप्तान नाक्स फूट-फूटकर रोने लगे। मैंने कहा– अगर आपको यह दर्द– भरी दास्तान कहने में दुःख हो रहा है तो जाने दीजिए।

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