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गुप्त धन-2 (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :467
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8464

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प्रेमचन्द की पच्चीस कहानियाँ


कप्तान नाक्स ने गला साफ़ करके कहा– नहीं भाई, वह किस्सा पूरा तो करना ही पड़ेगा। उसके बाद एक महीने तक मैं रोजाना लुईसा के पास जाता, और उसके दिल से अपने प्रतिद्वन्द्वी के ख़याल को मिटाने की कोशिश करता। वह मुझे देखते ही कमरे से बाहर निकल आती, खुश हो-होकर बातें करती। यहाँ तक कि मैं समझने लगा कि उसे मुझसे प्यार हो गया है। इसी बीच योरोपियन लड़ाई छिड़ गई। हम और तुम दोनों लड़ाई पर चले गए तुम फ्रांस गये, मैं कमाण्डिंग अफसर के साथ मिस्र गया। लुईसा अपने चचा के साथ यहीं रह गई। राजर्स भी उसके साथ रह गया। तीन साल तक मैं लाम पर रहा। लुईसा के पास से बराबर खत आते रहे। मैं तरक्कती पाकर लेफ्टिनेण्ट हो गया और कमाण्डिंग अफसर कुछ दिन और जिन्दा रहते तो ज़रूर कप्तान हो जाता। मगर मेरी बदनसीबी से वह एक लड़ाई में मारे गये। आप लोगों को उस लड़ाई का हाल मालूम ही है। उनके मरने के एक महीने बाद मैं छुट्टी लेकर घर लौटा। लुईसा अब भी अपने चचा के साथ ही थी। मगर अफसोस, अब न वह हुस्न था न वह जिन्दादिली, घुलकर कांटा हो गई थी, उस वक़्त मुझे उसकी हालत देखकर बहुत रंज हुआ। मुझे अब मालूम हो गया कि उसकी मुहब्बत कितनी सच्ची और कितनी गहरी थी। मुझसे शादी का वादा करके भी वह अपनी भावनाओं पर विजय न पा सकी थी। शायद इसी गम में कुढ़-कुढ़कर उसकी यह हालत हो गई थी। एक दिन मैंने उससे कहा– लुईसा, मुझे ऐसा ख़याल होता है कि शायद तुम अपने पुराने प्रेमी को भूल नहीं सकीं। अगर मेरा यह ख़याल ठीक है तो मैं उस वादे से तुमको मुक्त करता हूँ, तुम शौक से उसके साथ शादी कर लो। मेरे लिए यही इत्मीनान काफ़ी होगा कि मैं दिन रहते घर आ गया। मेरी तरफ़ से अगर कोई मलाल हो तो उसे निकाल डालो।

लुईसा की बड़ी-बड़ी आँखों से आँसू की बूंदें टपकने लगीं। बोली– वह अब इस दुनिया में नहीं है किरपिन, आज छः महीने हुए वह फ्रांस में मारे गये। मैं ही उसकी मौत का कारण हुई– यही गम है। फौज से उनका कोई संबंध न था। अगर वह मेरी ओर से निराश न हो जाते तो कभी फ़ौज में भर्ती न होते। मरने ही के लिए वह फ़ौज में गये। मगर तुम अब आ गये, मैं बहुत जल्द अच्छी हो जाऊँगी। अब मुझमें तुम्हारी बीवी बनने की काबलियत ज़्यादा हो गयी। तुम्हारे पहलू में अब कोई कांटा नहीं रहा और न मेरे दिल में कोई गम।

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