लोगों की राय

कहानी संग्रह >> गुप्त धन-2 (कहानी-संग्रह)

गुप्त धन-2 (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :467
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8464

Like this Hindi book 6 पाठकों को प्रिय

325 पाठक हैं

प्रेमचन्द की पच्चीस कहानियाँ


साहब– हम दान देना पाप समझते हैं।

मदारिन– हम देस-देस घूमते हैं। आपका जस गावेंगे।

साहब– हमें जस की चाह या परवाह नहीं है।

मदारिन– भगवान् आपको इसका फल देंगे।

साहब– मैं नहीं जानता भगवान् कौन बला है।

मदारिन– महाराज, क्षमा की बड़ी महिमा है।

साहब– हमारे यहाँ सबसे बड़ी महिमा दण्ड की है।

मदारिन– हुजूर, आप हाकिम हैं। हाकिमों का काम है, न्याय कराना। फलों के पीछे दो आदमियों की जान न लीजिए। न्याय ही से हाकिम की बड़ाई होती है।

साहब– हमारी बड़ाई क्षमा और न्याय से नहीं है और न न्याय करना हमारा काम है, हमारा काम है मौज करना।

बुधिया की एक भी युक्ति इस अहंकार-मूर्ति के सामने न चली। अन्त को निराश होकर वह बोली– हुजूर इतना हुक्म तो दे दें कि ये चीजें बंदर के पास रख दूँ। इन पर यह जान देता है।

साहब-मेरे यहाँ कूड़ा-कड़कट रखने की जगह नहीं है। आख़िर बुधिया हताश होकर चली गयी।

टामी ने देखा, मन्नू कुछ बोलता नहीं, तो शेर हो गया, भूँकता-भूँकता मन्नू के पास चला आया। मन्नू ने लपककर उसके दोनों कान पकड़ लिए और इतने तमाचे लगाये कि उसे छठी का दूध याद आ गया। उसकी चिल्लाहट सुनकर साहब कमरे से बाहर निकल आए और मन्नू के कई ठोकरें लगायी। नौकरों को आज्ञा दी कि इस बदमाश को तीन दिन तक कुछ खाने को मत दो।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

विनामूल्य पूर्वावलोकन

Prev
Next
Prev
Next

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book