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गुप्त धन-2 (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :467
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8464

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प्रेमचन्द की पच्चीस कहानियाँ


एक लड़के ने कहा– तू कपड़े क्यों नहीं पहनती? तू पागल नहीं तो और क्या है?

बुढ़िया– कपड़े जाड़े में सर्दी से बचने के लिए पहने जाते है। आजकल तो गर्मी है।

लड़का– तुझे शर्म नहीं आती?

बुढ़िया– शर्म किसे कहते हैं बेटा, इतने साधू-सन्यासी-नंगे रहते हैं, उनको पत्थर से क्यों नहीं मारते?

लड़का– वे तो मर्द हैं।

बुढ़िया– क्या शर्म औरतों ही के लिए है, मर्दों को शर्म नहीं आनी चाहिए?

लड़का– तुझे जो कोई जो कुछ दे देता है, उसे तू खा लेती है। तू पागल नहीं तो और क्या है?

बुढ़िया– इसमें पागलपन की क्या बात है बेटा? भूख लगती है, पेट भर लेती हूँ।

लड़का– तुझे कुछ विचार नहीं है? किसी के हाथ की चीज़ खाते घिन नहीं आती?

बुढ़िया– घिन किसे कहते है बेटा, मैं भूल गयी।

लड़का– सभी को घिन आती है, क्या बता दूँ, घिन किसे कहते है।

दूसरा लड़का– तू पैसे क्यों हाथ से फेंक देती है? कोई कपड़े देता है तो क्यों छोड़कर चल देती है? पगली नहीं तो क्या है?

बुढ़िया– पैसे, कपड़े लेकर क्या करूँ बेटा?

लड़का– और लोग क्या करते हैं? पैसे-रुपये का लालच सभी को होता है।

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