लोगों की राय

कहानी संग्रह >> गुप्त धन-2 (कहानी-संग्रह)

गुप्त धन-2 (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :467
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8464

Like this Hindi book 6 पाठकों को प्रिय

325 पाठक हैं

प्रेमचन्द की पच्चीस कहानियाँ


घर आकर पशुपति ने एक दिन शान्ता को बुला भेजा। इस तरह शान्ता उसके घर आने-जाने लगी। वह अपने पिता की दशा देखकर मन ही मन कुढ़ती थी।

इसी बीच में शान्ता के विवाह के सन्देश आने लगे, लेकिन प्रभा को अपने वैवाहिक जीवन में जो अनुभव हुआ था वह उसे इन सन्देशों को लौटने पर मजबूर करता था। वह सोचती, कहीं इस लड़की की भी वही गति न हो जो मेरी हुई है। उसे ऐसा मालूम होता था कि यदि शान्ता का विवाह हो गया तो इस अन्तिम अवस्था में भी मुझे चैन न मिलेगा और मरने के बाद भी मैं पुत्री का शोक लेकर जाऊँगी। लेकिन अन्त में एक ऐसे अच्छे घराने से सन्देश आया कि प्रभा उसे ‘नाहीं’ न कर सकी। घर बहुत ही सम्पन्न् था, वर भी बहुत ही सुयोग्य। प्रभा को स्वीकार ही करना पड़ेगा। लेकिन पिता की अनुमति भी आवश्यक थी। प्रभा ने इस विषय में पशुपति को एक पत्र लिखा और शान्ता के ही हाथ भेज दिया। जब शान्ता पत्र लेकर चली गई तब प्रभा भोजन बनाने चली गई। भाँति-भाँति की अमंगल कल्पनाएँ उसके मन में आने लगी और चूल्हे से निकलते धुएं में उसे एक चित्र-सा दिखाई दिया कि शान्ता के पतले-पतले होंठ सूखे हुए हैं और वह कांप रही है और जिस तरह प्रभा पतिगृह से आकर माता की गोद में गिर गई थी उसी तरह शान्ता भी आकर माता की गोद में गिर पड़ी है।

पशुपति ने प्रभा का पत्र पढ़ा तो उसे चुप-सी लग गयी। उसने अपना सिगरेट जलाया और ज़ोर-ज़ोर कश खीचने लगा।

फिर वह उठ खड़ा हुआ और कमरे में टहलने लगा। कभी मूँछों को दाँतों से काटता कभी खिचड़ी दाढ़ी को नीचे की ओर खींचता।

सहसा वह शान्ता के पास आकर खड़ा हो गया और काँपते हुए स्वर में बोला– बेटी जिस घर को तेरी माँ स्वीकार करती हो उसे मैं कैसे नाही कर सकता हूँ। उन्होंने बहुत सोच-समझकर हामी भरी होगी। ईश्वर करे तुम सदा सौभाग्यवती रहो। मुझे दुख है तो इतना ही कि जब तू अपने घर चली जायेगी तब तेरी माता अकेली रह जायगी। कोई उसके आँसू पोंछने वाला न रहेगा। कोई ऐसा उपाय सोच कि तेरी माता का क्लेश दूर हो और मैं भी इस तरह मारा-मारा न फिरूँ। ऐसा उपाय तू ही निकाल सकती है। सम्भव है लज्जा और संकोच के कारण मैं अपने हृदय की बात तुझसे कभी न कह सकता, लेकिन अब तू जा रही है और मुझे संकोच का त्याग करने के सिवा कोई उपाय नहीं है। तेरी माँ तुझे प्यार करती है और तेरा अनुरोध कभी न टालेगी। मेरी दशा जो तू अपनी आँखों से देख रही है यही उनसे कह देना। जा, तेरा सौभाग्य अमर हो।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

विनामूल्य पूर्वावलोकन

Prev
Next
Prev
Next

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book