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कलम, तलवार और त्याग-2 (जीवनी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :158
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8502

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महापुरुषों की जीवनियाँ


उक्त संस्था में सम्मिलित होने के बाद आप बड़ी लगन, उत्साह और एकनिष्ठता के साथ अध्यापन कार्य में जुट गए। अपने उत्साह और परिश्रम के कारण थोड़े ही समय में अध्यापकों में आपको विशिष्ट स्थान प्राप्त हो गया और कुछ ही दिनों में आप कालेज के प्राण हो गए। उस समय कालेज की आर्थिक अवस्था ऐसी बुरी हो रही थी कि मजबूरन एक मामूली से मकान में गुज़र करना पड़ता था। आपने उसके लिए एक यथायोग्य, भव्य भवन बनवाने का निश्चय किया और अपने सहयोगियों के साथ दक्षिण देश का दौरा शुरू किया। लगभग तीन बरस के अथक प्रयास के बाद दो लाख रुपये एकत्र कर लिए। इस सफलता ने आपकी उद्योगशीलता, कार्यकुशलता और प्रबन्धपटुता का सिक्का बिठा दिया। कालेज के लिए जल्द ही एक आलीशान इमारत बनकर तैयार हो गई, जो सदा दक्षिणात्यों की सच्ची देशभक्ति और निःस्वार्थ प्रयत्न का प्रतीक बनी रहेगी। इस महिमा-मण्डित कालेज और उसकी सच्ची लगनवाले कार्यकर्ताओं के श्रम और उद्योग की सराहना लार्ड नार्थकोट और अन्य सज्जनों ने जिन शब्दों में की है, वह निश्चय ही अति उत्साहवर्द्धक है।

चूँकि देश को गोखले का चिरऋणी होना था, इसलिए उसके सामान भी दैवगति से इकट्ठा होते गए। शिक्षा संबंधी कार्य करते अभी पूरे तीन बरस भी न हुए थे कि आपको उस विद्या गुण से पूरे, देवोपम उदारहृदय, महापुरुष की शिष्यता का सुयोग प्राप्त हुआ, जिसका यश आज भी भारत का बच्चा-बच्चा गा रहा है। ऐसा कौन होगा, जो स्वर्गीय महादेव गोविन्द रानडे के पुनीत नाम से परिचित न हो ? हिन्दुस्तान की हर दरोदीवार आज उस पुण्यकीर्ति का गुणगान कर रही है। उनका जीवन संसार के संपूर्ण सद्गुणों का उज्ज्वल उदाहरण है। उस देश के प्यारे के हृदय में देश और जाति की याद हरदम बनी रहती थी। भारतवर्ष की ऐसी कौन सी सभा-समिति थी, जिसको साधु पुरुष से कुछ सहायता न मिली हो। उन दिनों पूने की सार्वजनिक सभा की ओर से पत्र निकालने के लिए एक उत्साही, परिश्रमी, प्रगतिशील विचारवाले युवक की आवश्यकता थी। मिस्टर गोखले की उम्र उस समय २२ साल से अधिक न थी। कितने ही परिपक्व वय और अनुभव वाले सज्जन इस पद के लिए दावेदार थे। पर श्रीयुत रानडे की जौहरी निगाह में इस कार्य के लिए आपसे अधिक उपयुक्त दूसरा दिखाई न दिया। वाह! क्या परख थी! बाद की घटनाओं ने सिद्ध कर दिया कि रानडे का चुनाव इससे अच्छा हो ही नहीं सकता था।

पत्र-सम्पादन का भार अपने ऊपर लेते ही आपने देश की राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक समस्याओं का गंभीर अध्ययन आरम्भ कर दिया, और इन गुत्थियों को सुलझाने के लिए मिस्टर रानडे से अधिक उपयुक्त व्यक्ति और कौन हो सकता था ? एक सज्जन का कथन है कि ‘मिस्टर गोखले एक राष्ट्रीय मीरास हैं, जो स्वर्गीय रानडे ने देश को प्रदान किया है।’ और यह कथन सर्वथा सत्य है। इससे कौन इनकार कर सकता है कि आप अपने गुरु के रंग में नख से शिख तक डूबे हुए थे। एक भाषण में स्वयं सगर्व कहा था कि ‘मुझे १२ वर्ष तक उस महामति की शिष्यता का गौरव प्राप्त रहा और इस बीच मैंने उनके उपदेशों से अमित लाभ उठाया।’ इन शब्दों में कितनी श्रद्धा भरी है, यह बताने की आवश्यकता नहीं। धन्य है वह देवोपमगुरु और गुणशाली शिष्य। आज मिस्टर रानडे की आत्मा स्वर्ग में अपने शिष्य की निःस्वार्थ देशसेवा को देखकर आनंद में झूम रही होगी। मिस्टर गोखले को देश के आर्थिक तथा राजनीतिक प्रश्नों पर जो असाधारण अधिकार प्राप्त था, वह उसी महानुभाव के सत्संग का प्रसाद था। इस १२ वर्ष के शिष्यत्व में आपने कितनी ही आर्थिक रिपोर्टों और पत्रों के खुलासे किए, जो संशोधन के लिए श्रीयुत रानडे की सेवा में उपस्थित किए जाते थे। और इसमें कोई संदेह नहीं है कि उनके संशोधन श्रद्धावान शिष्य के लिए आफ़त का सामान हो जाते थे। वह उसी कठिन साधना का सुफल था कि सरकारी आर्थिक रिपोर्टों की भूलभुलैया को कोई चीज न समझते थे और चुटकी बजाते दूध का दूध, पानी का पानी, अलग करके दिखा देते थे।

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