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कलम, तलवार और त्याग-2 (जीवनी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :158
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8502

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महापुरुषों की जीवनियाँ


मिस्टर रानडे का सान्निध्य प्राप्त करने से आपको केवल यही लाभ नहीं हुआ कि आपको देश के उपस्थित प्रश्नों का मार्मिक ज्ञान हो गया किन्तु दिन-रात के साथ ने आपके हृदय पर भी अपने गुरु की श्रमशीलता, दृष्टि की व्यापकता, विचारों की उदारता, निष्पक्षता, विवेचना-शक्ति और सचाई की ऐसी गहरी छाप डाल दी कि ज्यों-ज्यों दिन बीते, वह मिटने के बदले और उभरती गई। आठ बरस तक आपने शिक्षण कार्य करने के अतिरिक्त सार्वजनिक सभा के पत्र ‘ज्ञान-प्रकाश’ को मिस्टर रानडे के तत्वावधान में बड़ी योग्यता से चलाया। आपके मत ऐसे प्रौढ़ और पक्के होते थे और आपके लेखों में वह सजीवता, नवीनता और ओज होता था कि थोड़े ही दिनों में वह पत्र शिक्षित समुदाय में आदर की दृष्टि से देखा जाने लगा। और सबको मालूम हो गया कि देश के सार्वजनिक जीवन में एक बड़े ही योग्य व्यक्ति की वृद्धि हुई है। इसका व्यावहारिक प्रमाण यह मिला कि आप बम्बई प्रान्तीय कौंसिल के मंत्री बना दिए गए और चार साल तक इस कार्य को भी आपने बड़ी तत्परता और योग्यता के साथ किया।

इन सेवाओं की बदौलत आपकी कीर्ति देश के दूसरे प्रान्तों में भी कस्तूरी की गंध की तरह फैलने लगी और अन्त में १८९७ में आप इण्डियननेशनल कांग्रेस के मंत्री पद पर प्रतिष्ठित हुए। इस साल आपको अपनी देशभक्ति का परिचय देने का एक सुयोग हाथ लगा। कांग्रेस और अन्य देश-हितैषी बहुत अरसे से यह शिकायत करते आ रहे थे कि ऊँचे पदों पर आम तौर से अँग्रेज़ ही नियुक्त किए जाते हैं और भारतवासी अधिक योग्यता रखने पर भी उनसे वंचित रहते हैं। अन्त में पार्लियामेंट का ध्यान इस ओर आकृष्ट हुआ और लार्ड विलबी की अध्यक्षता में एक शाही कमीशन नियुक्त किया गया कि इस बात की जाँच-पड़ताल करे कि यह शिकायतें कहाँ तक साधार हैं और कुछ ऐसी तजवीजें पेश करे, जो सरकार के लिए नियमावली का काम दें। दुःख है कि ब्रिटिश नेकनीयती और न्यायनिष्ठा का यह अन्तिम परिचय और प्रमाण था और ऐंग्लो इण्डियन वर्ग ने, जिस बेदर्दी के साथ इन प्रस्तावों का दलन किया, वह उनके आचरण और नीति पर सदा एक काला धब्बा बना रहेगा।

उस समय तक मिस्टर गोखले की सूक्ष्मदर्शिता, ओज भरे वक्तृत्व भारतीय प्रश्नों से सम्यक् अभिज्ञता और आर्थिक विषयों की समीक्षा की योग्यता की सारे भारत में धूम मच रही थी, इसलिए दक्षिण के लोगों के प्रतिनिधि बनाकर विलबी कमीशन के सामने मत प्रकाश के लिए भेजे गए। मिस्टर सुरेन्द्रनाथ बनर्जी, मिस्टर दीनसा ईदुलजी वाचा और मिस्टर सुब्रह्मण्य ऐयर के साथ आप इंग्लैंड गये। वहाँ कमीशन के सामने आपने जो भाषण किया, वह भाषा के सौष्ठव और ओज, युक्ति, तर्कों की सबलता और देशभक्ति के उत्साह की दृष्टि से बेजोड़ है यद्यपि यह भाषण बड़ा लम्बा था, फिर भी कमिश्नरों ने बड़ी उदारता और प्रसन्नता के साथ उसकी सराहना की और इसमें भी सन्देह नहीं कि उनके प्रस्तावों पर उसका गहरा असर पड़ा। भारत की ग़रीबी और सरकार की अनुचित कठोरता का करुण शब्दों में वर्णन करने के अनन्तर आपने कहा—

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