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उपन्यास >> कायाकल्प

कायाकल्प

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :778
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8516

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राजकुमार और रानी देवप्रिया का कायाकल्प....


दोनों ने उधर जाकर देखा, तो एक बालिका नाली में पड़ी रो रही है। गोरा रंग था, भरा हुआ शरीर, बड़ी-बड़ी आँखें, गोरा मुखड़ा, सिर से पाँव तक गहनों से लदी हुई। किसी अच्छे घर की लड़की थी। रोते-रोते उसकी आँखें लाल हो गयी थीं। इन दोनों युवकों को देखकर डरी और चिल्लाकर रो पड़ी। यशोदा ने उसे गोद में उठा लिया और प्यार करके बोला–बेटी, रो मत, हम तुझे तेरी अम्मा के घर पहुँचा देंगे। तुझी को खोज रहे थे। तेरे बाप का क्या नाम है?

लड़की चुप तो हो गई, पर संशय की दृष्टि से देख-देख सिसक रही थी। इस प्रश्न का कोई उत्तर न दे सकी।

यशोदा ने फिर चुमकारकर पूछा–बेटी, तेरा घर कहाँ है?

लड़की ने कोई जवाब न दिया।

यशोदा०–अब बताओ महमूद, क्या करें?

महमूद एक अमीर मुसलमान का लड़का था। यशोदानन्दन से उसकी बड़ी दोस्ती थी। उसके साथ वह भी सेवासमिति में दाखिल हो गया था। बोला–क्या बताऊँ? कैंप में ले चलो, शायद कुछ पता चले।

यशोदा०–अभागे ज़रा-ज़रा से बच्चों को लाते हैं और इतना भी नहीं करते कि उन्हें अपना नाम और पता तो याद करा दें।

महमूद०–क्यों बिटिया, तुम्हारे बाबूजी का क्या नाम है?

लड़की ने धीरे से कहा–बाबूजी!

महमूद–तुम्हारा घर इसी शहर में है या कहीं और?

लड़की–मैं तो बाबूजी के साथ लेल पर आयी थी!

महमूद–तुम्हारे बाबूजी क्या करते हैं?

लड़की–कुछ नहीं कलते।

यशोदा०–इस वक़्त अगर इसका बाप मिल जाए तो सच कहता हूँ, बिना मारे न छोड़ूँ। बच्चू गहने पहनाकर लाये थे, जाने कोई तमाशा देखने आये हों!

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