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उपन्यास >> निर्मला (उपन्यास)

निर्मला (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :304
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8556

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अद्भुत कथाशिल्पी प्रेमचंद की कृति ‘निर्मला’ दहेज प्रथा की पृष्ठभूमि में भारतीय नारी की विवशताओं का चित्रण करने वाला एक सशक्तम उपन्यास है…


अब क्या करना चाहिये, यह उनकी समझ में न आता था।

एक दिन वह इसी चिंता में बैठे हुए थे कि उनके सहपाठी मित्र नयनसुखराम आकर बैठ गये और सलाम-वलाम के बाद मुस्कराकर बोले-आज कल तो बहुत गहरी छनती होगी। नयी बीवी का आलिंगन करके जवानी का मजा आ जाता होगा? बड़े भाग्यवान हो! भई, रूठी हुई जवानी को मनाने का इससे कोई अच्छा उपाय नहीं कि नया विवाह हो जाय। यहाँ तो जिन्दगी बवाल हो रही है। पत्नीजी इस बुरी तरह चिमटी हैं कि किसी तरह पिण्ड ही नहीं छोड़ती। मैं तो दूसरी शादी की फिक्र में हूँ। कहीं डौल हो तो ठीक-ठाक कर दो। दस्तूरी में एक दिन तुम्हें उसके हाथ के बने हुए पान खिला देंगे।

तोताराम ने गम्भीर भाव से कहा–कहीं ऐसी हिमाकत न कर बैठना, नहीं तो पछताओगे। लौंडियाँ तो लौंडों से ही खुश रहती हैं। हम तुम अब उस काम के नहीं रहे। सच कहता हूँ मैं तो शादी करके पछता रहा हूं बुरी बला गले पड़ी सोचा था, दो-चार साल और जिन्दगी का मजा उठा लूँ, पर उलटी आँतें गले पड़ी?

नयनसुख–तुम क्या बातें करते हो। लौंडियों को पंजो में लाना क्या मुश्किल बात है, जरा सैर-तमाशे दिखा दो, उनके रूप-रंग की तारीफ कर दो, बस, रंग जम गया।

तोता–यह सब कर-धर के हार गया।

नयन–अच्छा! कुछ इत्र-तेल, फूल-पत्ते चाट-वाट का भी मजा चखाया?

तोता–अजी, यह सबकुछ कर चुका। दम्पत्ति शास्त्र के सारे मन्त्रों का इम्तहान ले चुका, सब कोरी गप्पे हैं!

नयन–अच्छा, तो मेरी एक सलाह मानो। जरा अपनी सूरत बनवा लो। आजकल यहाँ एक बिजली के डॉ. आये हुए हैं, जो बुढा़पे के सारे निशान मिटा देते हैं। क्या मजाल कि चेहरे पर एक झुर्री या सिर का बाल पका रह जाय। न जाने क्या जादू कर देते हैं आदमी का चोला ही बदल जाता है।

तोता–फीस क्या लेते हैं?

नयन–फीस तो सुना है, शायद पाँच सौ रुपये!

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