लोगों की राय

उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566

Like this Hindi book 9 पाठकों को प्रिय

410 पाठक हैं

संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


‘‘इसलिए कि मैं आपकी लड़की नहीं हूँ, आपकी बहू हूँ। मेरा भी तो कुछ अधिकार है।’’

‘‘तो तुम मेरा कहा नहीं मानोगी?’’

‘‘नहीं, इस विषय में नहीं।’’

‘‘क्यों? मैं तुम्हारा श्वशुर नहीं हूँ क्या?’’

‘‘आप ठीक सम्मति नहीं दे रहे। मद्य-सेवन से आपकी बुद्धि ठीक कार्य नहीं कर रही।’’

‘‘आज तक घर में किसी ने शिवदत्त को यह नहीं कहा था कि वह मद्य-सेवन करता है और उसकी बुद्धि ठीक कार्य नहीं कर रही। अपनी बहू से यह लांछन सुन वह भौचक्का हो उसका मुख देखता रह गया।

उर्मिला इतना कह अपने कमरे में चली गयी। उसके चले जाने के पश्चात् शिवदत्त की हँसी निकल आयी। हँसकर उसने महादेव से पूछा, ‘‘क्यों महादेव! तुमसे भी यह इसी तरह बात करती है?’’

‘‘पिताजी! वह मेरे साथ तो इतना कुछ भी नहीं करती। रोटी खिला देती है, कपड़े तैयार कर रखती है, और रात-रात-भर भगवद्-भजन में लीन रहती है। कभी कुछ काम कहना हुआ तो कह दिया, अथवा मैंने उसको कुछ करने को कहा तो कर दिया।’’

‘‘सच ही दयनीय अवस्था है तुम्हारी।’’

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book