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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


उनके हँसने से तो शिवदत्त को और भी क्रोध चढ़ आया। उसने कह दिया, ‘‘तो तुम सब भी मेरी मति भ्रष्ट मानते हो?’’

‘‘देखो जी!’’ महादेव की माँ ने कह दिया, ‘‘आपका इन्द्र के प्रति द्वेष अकारण ही है। वह यहाँ रहता तो किसी दूसरे के घर रहने और भोजन करने की उसको आवश्यकता न रहती। इतने बड़े अफसर का दोहता किसी के घर में दान का अन्न खाये, यह शोभा नहीं देता।’’

‘‘परन्तु वह कॉलेज में दाखिल ही क्यों हो?’’

‘‘इसलिए कि वह बहुत योग्य है और कॉलेज की पढ़ाई योग्य लड़कों के लिये ही होती है, फेल हुए लड़कों के लिये नहीं।’’

‘‘मेरा कहने का मतलब है कि धनाभाव के कारण उसको कहीं नौकरी कर लेनी चाहिये।’’

‘‘धनाभाव अब नहीं रहा। वह पिताजी से सात सौ रुपया लेकर आया था। पाँच सौ उर्मिला ने दे दिया है। अब वह एक सहपाठी के घर भोजन और स्थान भी पा चुका है। मैं समझती हूँ कि भाग्य-रेखा बलवती है।’’

ज्यूँ-ज्यूँ शिवदत्त को यह कहा जाता कि इन्द्र एक योग्य लड़का है, तो उसको ऐसा भास होता कि विष्णु की निन्दा हो रही है और उसके मन में ईर्ष्या और द्वेष उत्पन्न होता था। एक बात पर उसके सन्तोष भी हो रहा था कि वह उनके घर ठहरने नहीं आया। यदि आकर बैठ जाता तो सब औरतें और कदाचित् महादेव भी उसका पक्ष लेते। विष्णु का पक्ष लेने वाला वह अकेला ही रह जाता है।

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