उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
दूसरा परिच्छेद
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ऐना-इरीन और विष्णु का सम्बन्ध, अभी इण्टरमीडिएट की परीक्षा नहीं हुई थी, तभी बन गया था। उस समय दोनों का विचार था कि वे परीक्षा में अच्छे अंक लेकर उत्तीर्ण हो जायेंगे। वे यह भी आशा करते थे कि विष्णु के पिता दोनों की पढ़ाई का खर्चा सहन कर सकेंगे। ऐना अपने पिता से भी सहायता की आशा करती थी।
दोनों के फेल होने ने उनकी योजना को प्रथम धक्का दिया। इस पर नवीन योजना बनने लगी। ऐना ने प्रस्ताव रखा कि वे दोनों भाग जायें। बम्बई जाकर विष्णु अपने पिता को लिखे कि उसने विवाह कर लिया है। इस पर विष्णु का पिता उन दोनों को वापस बुला लेगा और फिर दोनों को पुनः कोई काम करा देगा। यदि विष्णु ठेकेदारी करेगा तो ऐना का पिता उसमें भारी सहायता कर सकेगा।
विष्णु के हाथ में इतना रुपया नहीं था कि बम्बई जाया जाये और वहाँ किसी अच्छे होटल में ठहरा जाये। इस कारण वह टालमटोल कर रहा था। जब ऐना का आग्रह प्रबल हुआ तो उसने पाँच सौ रुपये माँ की तिजोरी में से और तीन सौ रुपये और लॉकेट तथा एक जोड़ा कर्ण-फूल भाभी उर्मिला की संदूकची में से चुरा लिये और ऐना के साथ भागने को तैयार हो गया। इस समय उसके घर पर इन्द्रनारायण आ गया और उसकी माँ का डाँटना एक बहाना बन गया।
ऐना तो भागने को तैयार बैठी थी। दोनों बम्बई पहुँच एपोलो होटल में ठहर गये। पाँच दिन तक तो खूब आनन्द रहा। खाना-पीना, घूमना और सिनेमा-नाच इत्यादि देखना, यह उनके दिन-भर का काम था। पाँचवे दिन जेब खाली होने लगी तो पहले ऐना ने अपने पिता को रुपये भेजने के लिए लिखा। उत्तर में उसका पिता स्वयं वहाँ आ गया। उसने पहुँचते ही विष्णु को होटल में बिल देने के लिए छोड़ ऐना को ले किसी अन्य होटल में चला गया। ऐना ने अपने पिता को अपनी योजना बता दी। उसने कहा, ‘‘यह मेरा हसबैण्ड है। हमने गुप्त रूप से विवाह कर लिया है। यदि हमको दो-तीन सप्ताह यहाँ रहने का अवसर मिले तो हम विष्णु के पिता को इस बात के लिए विवश कर सकेंगे कि हमारा विवाह स्वीकार कर लें।’’
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