उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
मिस्टर विलियम इरीन ने परिस्थिति को अपने दृष्टिकोण से देखकर कह दिया, ‘‘ऐना! तुम नाबालिग हो। इस कारण तुम बिना माता-पिता की स्वीकृति के विवाह करने के योग्य नहीं। इस पर भी मैं यह स्वीकार कर लूँगा यदि तुम्हारा कहा जाने वाला हसबैण्ड अपने पिता से, तुम्हारे नाम कम-से-कम बीस हजार रुपये जमा करवा दे। वह रुपया केवल उसी अवस्था में तुम्हारा हो, जब तुम दोनों तलाक देने का विचार करो।’’
‘‘मैं समझती हूँ कि उसका पिता मान जायेगा।’’
‘‘तो चलो, उसको कहो कि अपने पिता को लिख दे। यदि वहाँ से स्वीकृति आ जाये तो मैं विवाह स्वीकार कर सकता हूँ। तभी तुम दोनों को इकट्ठा रहने की स्वीकृति दे सकता हूँ।’’
उसी सायंकाल ऐना और उसके पिता विष्णु से मिलने को आये। विष्णु ऐना के प्रेम पर इतना विश्वास रखता था कि वह उसको अपने पिता को मना लाने पर दृढ़ मत हो चुका था।
सायंकाल वे आये तो विष्णु का मुख खिल उठा। उसने तीन कप चाय मँगवाई और चाय पीने के साथ-साथ बात होने लगी। ऐना के पिता ने बात आरम्भ की। उसने कहा–‘‘देखो मिस्टर विष्णु! तुम दोनों अभी ‘माइनर’ हो। इस कारण तुम्हारा विवाह किसी भी रीति-रिवाज के अनुसार हुआ हो, गैर-कानूनी है। यह तभी स्वीकार हो सकता है, जब मैं और तुम्हारे पिता इसको स्वीकार कर, अपनी सहमति दें और मैं अपनी सहमति तभी दे सकता हूँ जब तुम्हारे पिता ऐना के नाम बीस हजार रुपया लिख दें। वह इस शर्त पर कि यदि तुम कभी इसको छोड़ो तो इसके गुजारे के लिये वह रुपया इसे मिल जाये।’’
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