उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
‘‘मुझसे भी ज्यादा?’’ रहमत ने मुस्कराते हुए पूछ लिया।
‘‘नहीं, मेरी जान! तुम तो सीप समान सफेद और चमकदार हो। वह बादामी रंग की है। तुम्हारा मुख अण्डे के समान गोल और लम्बा है। उसका चाँद के समान गोल है। तुम लम्बी हो, वह तुमसे कुछ ठिगनी है।’’
‘‘आप तो बहुत नाप-तोल करते रहते हैं?’’
‘‘हम लोगों को और काम ही क्या है! देखा नहीं कि अब्बाजान ने तुमको देखते ही फतवा दे दिया कि तुम खूबसूरत हो? उनकी चारों बीवियों से तुम खूबसूरत हो।’’
‘‘उनमें से आपकी माँ कौन है?’’
‘‘इनमें से कोई भी नहीं। वे मेरे बचपन में ही फौत हो गयी थीं।’’
‘‘ओह! तभी मैं इतने दिन से यही विचार कर रही थी कि उन चारों में आपकी माँ तो कोई भी नहीं हो सकती। आप बिलकुल गोरे हैं। नवाब साहब की चारो बावियाँ गहरे रंग की हैं। नवाब साहब खुद भी तो कुछ उजले रंग के नहीं हैं।’’
‘‘मेरी माँ बहुत खूबसूरत थीं। उनका एक फोटो कुंवारे वक्त का अब्बाजान के पास है। शादी के बाद तो उनकी तसवीर ली नहीं जा सकी।’’
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