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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


रामाधार और इन्द्रनारायण इस व्यवहार से विपरीत ही आशा करते थे। आज से दो मास पूर्व इन्द्रनारायण आया था। वह नानाजी को प्रणाम कर एक घण्टा-भर बैठा रहा था। परन्तु नानाजी एक उपन्यास पढ़ते रहे थे। न तो नानाजी ने ही कुछ पूछा और न ही इन्द्रनारायण कुछ कह सका। एक घण्टा-भर बैठने के पश्चात् वह उठ खड़ा हुआ और प्रणाम कर बोला, ‘‘अब मैं चलता हूँ, देर हो रही है।’’

‘‘ठीक है।’’ शिवदत्त का उत्तर था।

इस प्रकार की रूक्षता के पश्चात् आज इस व्यवहार ने इन्द्र और उसके माता-पिता, तीनों को आश्चर्य में डाल दिया था।

रामाधार ने पूछ लिया, ‘‘माँ कैसी हैं? साधना बहन को मिलने को जी कर रहा है।’’

‘‘भाई तनिक बैठो। अभी तो आये तो। चाय आती है। रात को भोजन होगा, उस समय विस्तार से बातचीत होगी।’’

‘‘पर हम तो पाँच बजे की गाड़ी से जाना चाहते हैं। घर पर बच्चे अकेले हैं।’’

‘‘पाँच बजे की गाड़ी से? घर किस समय पहुँचोगे?’’

‘‘रात को दो बजे।’’

‘‘तो व्यर्थ है। आधी रात तक तो बच्चे अकेले ही रहेंगे ही। शेष आधी रात भी वे रह जायेंगे। चिन्ता की बात नहीं। देखो, रमा कितने वर्ष का है अब? पन्द्रह से ऊपर है। उतनी उमर में तो सौभाग्यवती इन्द्र की माँ बन चुकी थी।’’

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