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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


इस प्रकार की अपनेपन की बातों ने रामाधार का मुख बन्द कर दिया। यह निश्चय हो गया कि रात के दस बजे की गाड़ी से वे जायेंगे। इस प्रकार प्रातः सात बजे घर पहुँच जायेंगे।

चाय आ गयी। सौभाग्यवती की माँ पद्मावती और साधना भी वहाँ आ गयीं। शिवदत्त ने कह दिया, ‘‘महादेव और उर्मिला को भी बुला लिया जाये।’’

महादेव ने आते ही कहा, ‘‘पिताजी! मैं तो क्लब में जा रहा हूँ।’’

‘‘तुम्हारी इच्छा है। आज तुम्हारी बहन आयी है और यह कुछ सुनना चाहती है।’’

‘‘क्या सुनना चाहती हो, बहन?’’

‘‘पिताजी! आप क्या सुनना चाहते हैं? एक बात तो डेढ़ वर्ष हुआ सुन गयी थी। अब भी कुछ सुनाना हो तो सुना दीजिए।’’

‘‘हाँ पिताजी!’’ महादेव वहीं बैठ गया, ‘‘सुनाइये बहन को, क्या कहना चाहते हैं?’’

मैं यह कहना चाहता हूँ कि बरखुरदार इन्द्रनारायण रायसाहब की लड़की से विवाह कर लेगा। तब तुम्हारी बहू जीवन-भर तुम्हारे घर पर बैठकर रोया करेगी।’’

रजनी के कहने और इन्द्र के गौना लाने से मना करने पर सौभाग्यवती को जो सन्देह हुआ था, उसका समर्थन ही उसके पिता ने किया था। वह विक्षुब्ध मन से अपने पिता का मुख देखती रह गयी। कुछ भी उत्तर नहीं दे सकी।

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