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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


अतः तीनों ड्राइंग-रूम में चले गये। विष्णुस्वरूप का परिचय राय साहब से हो चुका था। रायसाहब का विचार था कि यह लड़का रजनी से मिलने आता है और कदाचित् दोनों में लगाव उत्पन्न हो रहा है।

‘‘चाय पर बैठते ही रायसाहब सिन्हा ने बताया, ‘‘इन्द्र! तुम्हारे पिताजी का पत्र आया है। उसमें उन्होंने लिखा है कि तुम्हारा गौना लेने वे बीस तारीख को जा रहे हैं। उनकी इच्छा है कि मैं परिवारसहित उनके साथ चलूँ। कम-से-कम रजनी को जरूर भेज दूँ। राधा जा रही है, इस कारण रजनी का चलना भी आवश्यक है। उन्होंने लिखा है कि तुम्हारी माताजी रजनी को लेने आयेंगी। वे कल दो बजे की गाड़ी से आयेंगी और पाँच बजे की गाड़ी से रजनी को ले जायेंगी। हम दिन के दिन पहुँच सकते हैं।’’

इसमें उत्तर देने के लिये कुछ नहीं था। केवल इन्द्रनारायण को प्रातः दस बजे की गाड़ी से जाने के स्थान पाँच बजे सायंकाल की गाड़ी से जाने का कार्यक्रम बन गया।

इसका अर्थ था कि रजनी का उसके घर जाना निश्चय हो गया। रायसाहब ने कहा, ‘‘पत्र का उत्तर तो रजनी की माँ कल तुम्हारी माँ को देगी। मैं रजनी को कह रहा हूँ कि उसको कल जाने के लिये तैयार रहना चाहिये। क्यों रजनी! तुम्हारा क्या विचार है?’’

‘‘आप स्वीकृति देंगे तो अवश्य जाऊँगी। मैं तो आपसे आज स्वीकृति माँगने ही वाली थी।’’

‘‘तो तुम बिना बुलाये ही जाने वाली थीं?’’

‘‘मुझको राधा ने लिखा था कि माताजी उसको लखनऊ नहीं लातीं। यदि मैं इन्द्र भैया के गौने पर आ जाऊँ तो भैया की बहन के दर्शन तो हो जायेंगे।’’

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