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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


‘‘तब तो ठीक ही है।’’ इस प्रकार बात निश्चित हो गयी।

‘‘पीछे रजनी ने इन्द्र को कहा, ‘‘पिताजी का पत्र मेरे पत्र के उत्तर में ही है।’’

‘‘और राधा का?’’

‘‘मेरा पत्र राधा के उत्तर में था।’’

‘‘तो तुम दोनों बहनों ने षड्यन्त्र किया है?’’

अगले दिन इन्द्र अपने जाने की तैयारी पूरी कर माँ को लेने स्टेशन चला गया। स्टेशन से माँ को लेकर, इक्के में बैठकर वापस सिन्हा साहब की कोठी पर आ पहुँचा।

रजनी की माँ ने लड़की के लिए शकुन, कपड़े और एक सेट भूषणों का दिया और कह दिया, ‘‘रजनी के पिता और मैं जा नहीं सकेंगे। रजनी जा रही है, वह बहू को लेकर यहाँ आयेगी। यहाँ से हम उसको नैनीताल ले जायेंगे। इन्द्र भी उसके साथ चलेगा।

‘‘तो ठीक है। मैं इसका अर्थ यह समझती हूँ कि रजनी हमारे घर में एक महीने के लगभग तो रहेगी ही। इतने दिन तो हम बहू को अपने घर पर रखेंगे ही।’’

‘‘ये ननद-भाभी स्वयं निश्चय कर लेंगी।’’

दुरैया से रामाधार इत्यादि के विदा होने से पूर्व ही इन्द्र की नानी पद्मादेवी, इन्द्र की मौसी साधना और भाभी उर्मिला वहाँ पहुँच गईं। इन्द्र ने उनसे पूछा, ‘‘विष्णु नहीं आया? वह तो कह रहा था कि अवश्य आयेगा?’’

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