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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


‘‘तो तुम्हारा मतलब यह है कि हम हिन्दू भी गो-मांस खाने लगें?’’

‘‘यह बात नहीं, बाबा! मेरे कहने का मतलब यह है कि महाराज दलीप को राज्य के अन्य अनेक कार्य रहे होंगे। उनको छोड़ इस मामूली–से काम के लिये जीवन व्यतीत करना किसी अच्छे राजा का कर्तव्य नहीं है।’’

‘‘तो राजा का क्या कर्तव्य है?’’

‘‘उसका काम है दंड-विधान चलाना।’’

‘‘वह तो चलता ही होगा, अन्यथा दुष्ट लोग तो राज्य-भर को लूटकर खा गये होते।’’

‘‘यह असम्भव है।’’

‘‘अच्छा बताओ, यहाँ भारत में किसका राज्य है?’’

‘‘इंग्लैण्ड वालों का।’’

‘‘इंग्लैण्ड तो यहाँ से बहुत दूर है। इस पर भी वहाँ के लोगों का राज्य यहाँ चलता है।’’

‘‘आज की बात दूसरी है, बाबा! राज्य पूर्ण जाति का है और उस जाति के लाखों लोग यहाँ पर राज्य चलाते हैं। तब तो अकेला राजा होता था और वही गौएँ चराने में लग गया था।’’

यह कैसे कहते हो कि उसके साथ अन्य कोई नहीं था? राज्य के मंत्री थे, सैनिक थे, सेनापति थे और कदाचित् सहस्त्रों कर्मचारी रहे होंगे। अकेला तो कोई भी राज्य नहीं चला सकता।

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