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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


‘‘नादिरा की किश्ती में सवार हो हम भी किनारे लग जायेंगी।’’ सरवन का कहना था।

असगरी ने कहा, ‘‘मुझे यह इन्तजाम कुछ अच्छा नहीं लगा। मैं पूछती हूँ कि खाविन्द का बँटवारा कैसे होगा? मेरी तबीयत उसकी सोहबत के लिये की और वह नादिरा की सोहबत का खास्तागार हुआ तो क्या होगा? हम चारों एक जैसी खूबसूरत तो हैं नहीं। इससे हमारा आपस में झगड़ा ही रहेगा।’’

 नादिरा ने अपना विचार बता दिया, ‘‘अगर हम अपनी दिमाग सही रखेंगी, तो हम उसको काबू में रख सकेंगी।’’

‘‘नादिरा! यह कहना तो आसान है, मगर करना निहायत मुश्किल है।’’

‘‘कुछ तो करना ही होगा। जैसा अब्बा ने कहा है, हममें से किसी एक की शादी उससे या किसी से भी जाये और फिर वह और बीवियाँ घर पर ले आये तो उन दूसरी बीवियों से तो समझौता हो ही नहीं सकेगा।’’

इस युक्ति का उत्तर किसी के पास नहीं था। इस कारण सब चुप थीं। एकाएक नरगिस ने पूछ लिया, ‘‘लेकिन क्या यह आखिरी फैसला हो गया है कि वह अपनी अंग्रेज बीवी को छोड़ देगा?’’

असगरी का कहना था, ‘‘यह फैसला तो करना अदालत का काम है कि उन दोनों में तलाक मंजूर करे। वह तो दरख्वास्त ही दे सकता है।’’

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