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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


‘‘चारों की?’’

‘‘हाँ।’’

‘‘सबका एक ही घर में क्या अचार डाल दोगे?’’

‘‘देखो बेगम! चार बीवियाँ तो वह कर ही सकता है। मुझको उम्मीद है कि उस जैसा आदमी जरूर करेगा। इससे अगर एक लड़की की उससे शादी कर दी और तीन वह दूसरे घरों की ले आया तो ठीक रहेगा क्या? अब ये चारों बहनें वहाँ जाकर इकट्ठे रहने लगेंगी। अगर ये मुहब्बत से और अपना हक बाँटकर लेती रहीं तो बहुत अच्छा रहेगा। सात लाख की जमींदारी है। चारों सुलह-सफाई से रहेंगी तो वहाँ हकूमत करेंगी, हकूमत।’’

दोनों बेगमें चुप कर गयीं। इस पर नवाब ने कह दिया, ‘‘नादिरा की माँ से भी पूछना होगा। मैं तो समझता हूँ कि यह काम बहुत ठीक रहेगा। कुछ लेन-देन की बात भी नहीं होगी।’’

उस रात चारों लड़कियाँ जब अपने सोने के कमरे में गयीं तो इसी विषय में बातचीत होने लगी। नादिरा ने पूछ लिया, ‘‘असगरी! अब्बा ने ठीक किया है यह?’’

‘‘वह तो तुम पर लट्टू हो रहा था।’’

‘‘वह इसलिये कि उसने अभी तक देखा ही मुझको था।’’

‘‘हाँ।’’ दूसरी बहन नरगिस बोल उठी, ‘‘तुम हम सबसे खूबसूरत भी तो हो।’’

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