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उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
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अनवर गया तो नवाब साहब हरम में जा पहुँचे। वहाँ उनकी दो बेगमें चारों लड़कियाँ बैठी हँस रही थीं। नवाब साहब ने पहुँचते ही पूछा, ‘‘कौन बेगम अनवर को लड़की देने का वायदा कर आयी हैं?’’ छहों औरतें चुप कर गयीं। इस पर नवाब साहब ने पुनः पूछा, ‘‘मैं जानना चाहता हूँ कि कौन गयी थी वहाँ?’’
बड़ी बेगम बोल उठी, ‘‘आप नाराज क्यों होते हैं? जो भी गयी हो, बुर्का पहने ही गयी थी। वह उसका एक नाखून तक नहीं देख सका।’’
‘‘इस पर भी जानना चाहता हूँ कि कौन गया है। यूं तो तो मैंने उसको जेहन-नशीन करा दिया है कि कोई नौकरानी उससे हँसी मजाक कर गयी है।’’
इस पर सब हँस पड़ीं। बड़ी बेगम ने गम्भीर होकर कह दिया, ‘‘जी, मैं तो उसको जवाब देकर वापस भेज देना चाहती थी, मगर असगरी ने कह दिया कि उसका शुक्रिया तो अदा कर आऊँ।
‘‘मैंने कहा कि मुझको शर्म आती है। तो वह बोली, ‘तो मैं जाऊँ? भले आदमी का शुक्रिया तो अदा करना ही चाहिये।’’
‘देख लो।’ मैंने कह दिया।
‘‘यह गयी और उससे जो बातें हुई, सुना रही थी। वह नादिरा से शादी करना चाहता है।’’
‘‘हाँ; मगर मैंने उससे एक और तजवीज की है। मैंने बताया है कि बड़ी लड़की के रहते हम छोटी की शादी नहीं कर सकते। इसलिये मैंने यह कहा है कि चारों की शादी एकदम उसके साथ कर दूँगा, अगर वह अपनी अंग्रेज बीवी को तलाक दे दे।’’
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