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उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
‘‘उसको पहले भगाओ तो एक बात की जा सकती है।’’
‘‘क्या?’’
‘‘चारों की शादी तुम्हारे साथ कर सकता हूँ। फिर छोटी-बड़ी का सावल ही पैदा न होगा।’’
‘‘चारों की?’’
‘‘हाँ, क्या हर्ज है?’’ यह कह नवाब साहब मुस्करा उठे।
‘‘वे सब मिलकर मेरी आफत कर देंगी।’’
‘‘उनसे भी पूछ लेंगे, मगर पहली बात यह है कि इस अंग्रेज बीवी को भगाओ।’’
‘‘यह मैं आज से ही कोशिश करूँगा।’’
‘‘हाँ; एक और भी बात सोच-समझ लो। मैं लड़कियों की शादी पर कुछ भी न दे सकूँगा।’’
‘‘अपनी लड़कियों के कपड़े-जेवर तो देंगे ही?’’
‘‘यह तो मामूली बात है।’’
‘‘हम पर खुदा का फजल है। हमारे खजाने भरपूर हैं। मगर आपकी दूसरी लड़कियाँ कैसी हैं? छोटी लड़की को तो मैंने देखा है।’’
‘‘सबकी-सब चाँद की तरह गोरी और हिरनी की तरह चुस्त हैं।’’
‘‘अनवर को जन्नत का नजारा दिखायी देने लगा था। उसने नवाब साहब से कहा, ‘‘आप बेगमात और लड़कियों से राय कर लें। फिर एक बार चारों की मुझसे बात करा दीजिये।’’
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