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उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
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रजनी और इन्द्रनारायण मेडिकल कॉलेज की पाँचवी श्रेणी में पढ़ते थे। दोनों की अस्पताल में ड्यूटी लग गयी थी। रजनी मैटर्निटी वार्ड में काम कर रही थी। इन्द्र सर्जिकल वार्ड में था।
एक दिन रात के भोजन के समय रजनी ने इन्द्रनारायण से कहा, ‘‘भैया इन्द्र! आज एक तुम्हारा परिचित रोगी डिलीवरी के लिये आया है।’’
‘‘कौन है?’’
‘‘ऐना इरीन।’’
‘‘ओह! वह हस्पताल में आयी है?’’
‘‘हाँ, एक खास कमरा लिया गया है। मगर उसके कमरे का प्रबन्ध करने ऐना के श्वशुर साहब आये हैं, उसके पति अनवर हुसैन नहीं।’’
‘‘अनवर हुसैन को तो उसने तलाक दे दिया हुआ है।’’
‘‘सत्य? यह तो और भी विचित्र प्रतीत होता है। तालाक के पश्चात् उसके श्वशुर की भला उसमें क्या रुचि हो सकती है?’’
इन्द्रनारायण हँस पड़ा। हँसत-हँसते उसने कह दिया, ‘‘दाल में कुछ काला प्रतीत होता है।’’
‘‘डॉक्टर सैंडरमैन की सम्मति है कि बच्चा ‘राइट पोजीशन’ में नहीं है और बच्चे के जन्म के समय कष्ट भी हो सकता है। कदाचित् ऑपरेशन भी करना पड़े। इस पर नवाब साहब बहुत चिन्ता व्यक्त कर रहे थे।’’
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