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उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
‘‘हाँ हजरत, औरत के पास यही तो एक हथियार है।’’
‘‘तो रहमत! तुम अपनी अर्जी बाराबंकी में आकर करो। तुम्हारा लड़का भी वहाँ है और वहाँ से ही रुपये के मुताल्लिक इन्तजाम भी हो सकता है।’’
‘‘तो कब हाजिर हो जाऊँ?’’ ऐना ने मुस्कराकर पूछा।
‘‘मैं दो दिन में लौट जाऊँगा। उसके बाद कभी भी आ सकती हो।’’
‘‘आप अपनी गाड़ी में ही जायँगे क्या?’’
‘‘हाँ।’’
‘‘तो इस खादिमा को भी साथ लेते जाइयेगा।’’
‘‘ले तो जा सकता हूँ, मगर अनवर इससे नाराज होगा। उसकी छोड़ी हुई बीवी को मैं साथ लिये हुए घूमूँ कुछ मौजूँ मालूम नहीं देता।’’
‘‘आपके साहबजादे नाराज नहीं होंगे। मैं उनसे भी अपने लड़के को देखने की इजाजत ले लूँगी। वे बहुत ही भले शख्स हैं।’’
‘‘ओह!’’ नवाब साहब ने कह दिया, ‘‘तुम उसको अभी भी एक भला शख्स समझती हो?’’
‘‘हाँ हजरत! उन्होंने मुझको पीटा और गोली से मार देने की धमकी दी, मगर उनके लिये मेरे मन में मुहब्बत है और अपनी नई शादियों के बाद भी उनको महसूस हो रहा है कि मेरे साथ बे-इन्साफी की गयी है।’’
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