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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


‘‘तो तुम अपने बाप के नाम को अदालत में मुश्तहर करोगे?’’

अनवर इस बात को समझ चुप कर गया। वह इसके उत्तर में कुछ कह नहीं सका। उसे चुप देख नवाब साहब ने कह दिया, ‘‘देखो, बरखुरदार! तुम अदालत में जा सकते हो। लेकिन याद रखो, मैं तुमको जमींदारी के हर किस्म के हक-हकूक से बरतरफ कर सकता हूँ। मैं तुमको कौड़ी-कौड़ी के लिये मोहताज कर दूँगा।’’

‘‘तो किसको वारिस बनाइयेगा?’’

‘‘ऐना के लड़के सरवर हुसैन को।’’

इससे अनवर के सिर पर तो मानो ठंडा पानी पड़ गया। वह गम्भीर होकर विचार करने लगा कि बाप की जमींदारी से बरतरफ होकर वह उस हालत में क्या कर सकेगा। अनवर अपनी हालत पर विचार कर रहा था। वह है; चार बीवियाँ हैं; चार बीवियों के चार बच्चे होने वाले हैं। कोठी का खर्चा, खाना, कपड़े और आगे भी बच्चा होने की उम्मीद। वह मन में खयाल करने लगा कि वह तो दर-दर का भिखारी हो जायेगा।

इतना विचार कर वह बिना एक शब्द कहे कमरे से बाहर निकल गया। सामने से ऐना गुसलखाने से नहा-धो, साफ-सुथरे कपड़े पहन और श्रृंगार किये हुए उसके सामने आ खड़ी हुई। वह मुस्करा रही थी। अनवर उसके सौन्दर्य को देख रहा था। ऐना सर्वथा प्रभात के समय खिल रहे फूल की तरह दिखाई दे रही थी। अनवर खयाल करने लगा था कि वह औरत तो दिन पर दिन बहुत ज्यादा खूबसूरत होती जा रही है। उसको अपने पिता के मन की हालत समझ आने लगी थी।

ऐना ने उसको चुप देख कह दिया, ‘‘सरकार! नाश्ता आ रहा है। ठहरिये, नाश्ता तो करते जाइये।’’

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