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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


‘‘कैसे?’’

‘‘किसी से उसका झगड़ा हुआ प्रतीत होता है। वह सड़क पर बुरी तरह घायल पड़ा पाया गया था। हस्पताल में उसका देहान्त हो गया। यह डेढ़-दो सौ वर्ष की बात है।’’

‘‘वैरी सॉरी फॉर हिम (उसका बहुत अफसोस है)। अवश्य ही उसने किसी लड़की को तंग किया होगा और उस लड़की के अन्य मित्रों ने सिर फोड़ दिया होगा।’’

इस पर दोनों चुप रहे। उनको चुप देख ऐना ने कह दिया, ‘‘मैं जरा यहाँ से छुट्टी पा लूँ तो आपको अपने घर पर निमंत्रण दूँगी।’’

‘‘परन्तु कहाँ है तुम्हारा घर? हमने तो सुना था कि तुमने अनवर को तलाक दे दिया था?’’

‘‘हाँ। वह घर नहीं है अब। मैंने अब अपना घर बना लिया है और आजाद रहती हूँ।’’

‘‘आजाद?’’ दोनों मुख देखते रह गये। इन्द्र पूछने ही लगा था कि यह गर्भ किस पति का है? इस समय नवाब, अनवर के पिता, अन्दर आ गये। रजनी और इन्द्र उठ पड़े और जाने की तैयारी करने लगे, परन्तु नवाब साहब ने उनको जाने नहीं दिया। वे बोले, ‘‘बैठिये। आप जा कहाँ रहे हैं? मैं तो आया और गया। बस, यही पूछने आया था कि डॉक्टर ने कब तक के लिये कहा है?’’

उत्तर रजनी ने दिया, ‘‘अभी दो दिन तक तो कोई आशा नहीं। खयाल है कि ये एक सप्ताह और ले सकती हैं।’’

‘‘देसी दाइयों के कहने के मुताबिक तो कल तक बच्चा हो जाना चाहिये।’’

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