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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


रजनी चुप रही। इस परस्पर-विरोधी सम्मति में वह कुछ कह नहीं सकी। इस पर नवाब साहब ने इन्द्र की ओर घूमकर कहा, ‘‘आपको मैंने पहले भी कहीं देखा है?’’

‘‘जी हाँ। आपके दर्शनों का सौभाग्य पहले भी मिला है। आपके पोते की सुन्नत पर चाय पार्टी के दिन आपसे मुलाकात करने का मौका नसीब हुआ था। मैं मिस इरीन का सहपाठी हूँ और अब मेडिकल कॉलेज में पढ़ता हूँ। ’’

‘‘कौन-सी जमात में हो?’’

‘‘पाँचवीं में?’’

‘‘डॉक्टर सैंडरसन से मुलाकात है?’’

‘‘ऐसे ही जैसे एक तालिबइलम की अपने उस्ताद से हो सकती है।’’

‘‘ऐना के मुताल्लिक मैं उससे कुछ कहना चाहता हूँ।’’

‘‘क्या?’’

‘‘यही कि वह इसका खास खयाल रखे।’’

‘‘वह तो होगा ही। इसमें कुछ कहने की आवश्यकता ही नहीं।’’

‘‘देखिये।’’ इतना कह नवाब साहब ने इन्द्र को कमरे से बाहर चलने का संकेत किया। इन्द्र नवाब साहब के पीछे-पीछे कमरे से बाहर निकल गया। इमारत से बाहर होते हुए भी नवाब साहब उसको घास के लॉन में ले गये। वहाँ लॉन में खड़े हो वे कहने लगे, ‘‘डॉक्टर सैंडरसन ने मुझको कहा है कि बच्चा टेढ़ा है और कदाचित् ऑपरेशन करना पड़ेगा। उसने यह भी कहा है कि यह ऑपरेशन बहुत ही भय की बात है।’’

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