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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


इन्द्रनारायण ने कह दिया, ‘‘डॉक्टर बहुत ही योग्य है। उसके हाथ से खतरे की कोई बात नहीं है। आप चिन्ता न करें। यदि ऑपरेशन की जरूरत हुई तो मैं यहाँ हाजिर रहूँगा। उस समय डॉक्टर से आपके विषय में कह दूँगा।’’

‘‘हाँ। इस पर भी तुम मेरा उनसे तआरुफ (परिचय) करा देते तो बहुत ही अच्छा होता।’’

‘‘करा दूँगा। अभी तो बहुत समय है।’’

इन्द्रनारायण अभी तक समझ नहीं सका था कि नवाब साहब क्यों ऐना में इतनी रुचि ले रहे हैं। अनवर को तलाक मिल चुका था और ऐना ने बताया था कि वह आजाद रहती है। इस पर भी वह गर्भ धारण किये है तो जरूर वह पेशा करती है और नवाब साहब उसके प्रशंसकों में हैं। इतना विचार कर भी वह ऐसी बात पर विश्वास नहीं कर सका।

ऐना का ऑपरेशन हुआ और बच्चा मरा हुआ पेट से निकाला गया। इस पर भी ऐना बच गयी। तीन मास तक हस्पताल में रहकर वह घर–जिसे वह अपना घर कहती थी–चली आयी। नवाब साहब ने उसे हिवैट रोड पर एक कोठी ले दी थी। वह वहीं रहती थी।

जब तक ऐना हस्पताल में रही, तब तक अनवर ने हस्पताल की तरफ से गुजरना बन्द कर दिया था। कहीं उस तरफ उसको काम भी होता, तो वह चक्कर काट कर उधर से जाता था, जिधर से हस्पताल के सामने से भी गुजरना न पड़े।

ऐना के जाने तक रजनी और इन्द्र को पता चल चुका था कि वह नवाब साहब की रखैल के रूप में रहती है। ऐना ने यह स्वीकार किया था कि वह बच्चा, जो उसके पेट में ही मर गया था, नवाब साहब का था।

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