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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


अपनी कोठी में पहुँच ऐना ने नवाब साहब को बताया कि डॉक्टर सैंडरसन क्या कहती थी। उसने कहा था कि इस बार तो उसकी जान बच गयी है। अगर फिर ऐसी ही बात हुई को वह जीवित नहीं बच सकेगी।

नवाब साहब का प्रश्न था, ‘‘तो फिर क्या होगा?’’

‘‘मैं तो आपकी बाँदी हूँ। जैसा चाहें करिये।’’

‘‘अगर मेरी अपनी औलाद तुमसे हो जाती तो जमींदारी का वारिस उसको बना देता।’’

‘‘जो बात हो नहीं सकती, उसको कैसे किया जाये? मेरी अभी भी आपसे इल्तजा है कि आप सरवर को अपना मुतबन्ना बना लीजिये। अपने बड़े लड़के के लिये खर्चा बाँध दीजिये। मैं फिर आपकी हर ख्वाहिश पूरी करती रहूँगी। सिर्फ औलाद पैदा नहीं की जायगी।’’

नवाब साहब ने वायदा किया, वे किसी लायक वकील से राय कर वसीयत लिख देंगे। इससे ऐना को सन्तोष हुआ।

इन दिनों अनवर गाँव में आकर रहने लगा था। वह जमींदारी के प्रबन्ध में हस्तक्षेप भी करने लगा था। ऐना को हिवैट रोड की कोठी में ठहराने का कारण भी अनवर का गाँव में जाकर रहना था।

अनवर की चारों बीवियाँ अनवर पर शासन करती थीं। असगरी की एक लड़की थी। नादिरा के एक लड़की और एक लड़का हो चुका था। नरगिस के दो लड़के थे और सरवर के केवल एक लड़की। चारों बहनों ने समझा-बुझाकर अपने पति को गाँव में लाकर रियासत के प्रबंध के लिये मना लिया था। वहाँ ऐना की वे बदनामी करने लगी थीं। ऐना का लड़का सरवर नवाब साहब की सबसे बड़ी बेगम के पास रहता था। उसको उससे मोह हो गया था।

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