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उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
ऐना के स्वास्थ्य लाभ करने तक अनवर ने जमींदारी के प्रायः सभी सूत्र अपने हाथ में ले लिये। वास्तव में अनवर ने कभी भी जमींदारी के काम में रुचि नहीं ली थी और वह इन बातों को बहुत ही कम समझता था। अब भी, यथार्थ से, उसकी बड़ी पत्नी असगरी ही रियासत का प्रबंध करती थी। अनवर उसी की राय से अपना व्यवहार बना रहा था।
इस पर भी चारों बेगमें तथा अनवर ऐना से निश्चिन्त नहीं थे। उनको भय लगा ही रहता था कि नवाब साहब कहीं ऐना के प्रभाव में आकर वसीयत कर उनको बेदखल न कर दें।
एक बार तो अनवर ने ऐना से छुट्टी पाने का यत्न भी किया। जब उसके बच्चा होने वाला था तो उसने डॉक्टर सैंडरसन को प्रस्ताव भी किया था कि वह एक लाख तक देगा, यदि ऐना का ऑपरेशन के समय सफाया कर दिया जाये। परन्तु डॉक्टर ने उसको वह फटकार बताई थी कि वह भयभीत हो वहाँ से भाग आया था। उसको भय था कि कहीं डॉक्टर ने पुलिस में रिपोर्ट कर दी तो निश्चय ही नवाब साहब उसको बेदखल कर देंगे।
इस पर भी सिवाय इसके कि धीरे-धीरे जमींदारी को अपने प्रबन्ध में ले लिया जाये, अनवर तथा उसकी बेगमें कुछ विचार नहीं कर सकीं कि क्या किया जाये।
इस प्रकार दिन व्यतीत हो रहे थे कि एक दिन अनवर ने खेत के पट्टे पर एक किसान से भाव-ताव कर रहा था, जब हरम से एक नौकरानी आयी और बोली, ‘‘बेगम की तबीयत नासाज है। आपको फौरन याद दिया है।’’
अनवर सब काम छोड़ हरम में जा पहुँचा। वहाँ चारों बहनें बैठी अपने पति की प्रतीक्षा कर रही थीं।
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