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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


एक दिन एकाएक उसको स्मरण हो आया। मध्याह्नौत्तर दो बजे थे। वह अपनी कोठी में अपने कमरे में बैठी कापियों के पन्ने उलट रही थी। जब उसे याद आया तो वह सामने रखी कापी को भूल ऐना के विषय में विचार करने लगी। उसने जब सैंडरसन की बात को याद किया तो उसका मन भय से काँप उठा। वह सोच रही थी कि उसने डॉक्टर की चेतावनी को भूलकर ठीक नहीं किया। क्या जाने उसकी हत्या हो चुकी हो।’’

वह उसी समय ऐना की कोठी पर जाने को तैयार हो गयी। इन्द्रनारायण अपने कमरे में बैठा आराम कर रहा था। वह पढ़ाई प्रातः चार बजे से ग्यारह बजे तक ही करता था। बारह बजे भोजनादि कर सो जाया करता था और तदनन्तर तीन बजे उठकर पुनः कार्य में लग जाता था।

रजनी उसके कमरे के बाहर आयी और उसे सोये देख विचार करने लगी कि उसे जगाये अथवा अकेली ही जाकर ऐना को डॉक्टर का सन्देश दे आये।

उसको अकेले उसकी कोठी पर जाना उचित प्रतीत नहीं हुआ। इस कारण उसने दरवाजे पर थाप देकर इन्द्र को जगाया। इन्द्र जागकर पूछने लगा, ‘‘क्या है?’’

‘‘मुझको एक स्थान पर जाना है। वहाँ अकेले जाने में भय प्रतीत होता है। मैं तुमको भी ले जाना चाहती हूँ।’’

‘‘चलो।’’ यह कहकर उसने उठकर कपड़े बदले और चलने को तैयार हो गया।

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