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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


‘‘मैं इसका अर्थ समझ नहीं सकी। पहले दिन जब नवाब साहब उसको लेकर आये थे तो मैं समझी थी कि नवाब साहब का उससे अनुचित सम्बन्ध है और वे उसका हस्पताल का खर्चा दे रहे हैं। पीछे जब वे उसका काम तमाम करने के लिये कहने लगे तो मैं समझी कि नवाब साहब की रखैल होने पर भी बच्चा किसी अन्य का है और नवाब साहब उससे नाराज हैं। पीछे जब उनका लड़का भी इसी काम के लिये आया तो मैं समझी हूँ कि बेटा बाप को इस औरत के पंजे से छुड़ाने के लिये यह कर रहा है।’’

‘‘मैं समझती हूँ कि आपकी सबकी धारणाएँ ठीक हैं। ये एक-दूसरे का विरोध नहीं करतीं। एक बात तो स्पष्ट है कि बाप-बेटे दोनों उससे छुटकारा पाना चाहते हैं।’’

‘‘मैं समझती हूँ कि यदि तुम्हारे मन में उसके लिये कुछ भी सहानुभूति है तो तुमको उसे सचेत कर देना चाहिये।’’

‘‘मेरे मन में उसके लिये दया आती है, सहानुभूति नहीं। मेरे कहने का अर्थ है कि मैं उसके व्यवहार को पसन्द नहीं करती। इस पर भी मनुष्यता के नाते ही उस पर दया कर उसको सचेत करने का यत्न करूँगी।’’

इस पर भी रजनी जा नहीं सकी। परीक्षा बहुत समीप थी। साथ हस्पताल में उसको बहुत समय देना पड़ा रहा था।

उन दिनों वह इन्द्र के साथ भी कहीं आ-जा नहीं सकती थी। दोनों का काम हस्पताल में भिन्न-भिन्न प्रकार का और और भिन्न-भिन्न समय पर होता था।

परीक्षा के पन्द्रह दिन पूर्व उसको हस्पताल से छुट्टी मिल गई। कॉलेज में पढ़ाई भी नहीं हो रही थी। विद्यार्थी अपने-अपने घरों पर पढ़ाई कर रहे थे। अपने कार्य में रजनी भूल भी गयी कि डॉक्टर सैंडरसन ने उसको ऐना के विषय में कुछ कहा भी था।

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