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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


‘‘मेरे मन पर एक बोझा है। वह यह कि नवाब साहब को पुलिस के हवाले क्यों नहीं कर दिया। वह नवाब का बच्चा बहुत ही पाजी हैं।’’

रजनी सुनती रही। इसमें कुछ उत्तर देने को नहीं था। डॉक्टर ने आगे कहा, ‘‘वह नवाब मुझको दस सहस्र रुपया देना चाहता था, यदि मैं उस औरत का वहीं ऑपरेशन टेबल पर ही खात्मा कर देती। मैं वह कर नहीं सकी।

‘‘एक अन्य साहब भी एक दिन आये थे। वे अपने को नवाब साहब का फरजन्द कहते थे और मुझको एक लाख रुपया देने की बात कहते थे। वे चाहते थे कि मैं किसी विष से उसका काम तमाम कर दूँ।’’

डॉक्टर ने आगे कहना आरम्भ रखा, ‘‘मैंने उस नवाबजादे को वह फटकार बताई थी कि याद रखेगा। मैं अब तुमसे यह पूछना चाहती थी कि इस औरत को दोनों बाप-बेटें क्यों खत्म कर देना चाहते थे?’’

रजनी डॉक्टर की ये बातें भौचक्की होकर सुनती रही थी। अपनी सफाई देते हुए उसने कह दिया, ‘‘डॉक्टर! मेरा भी उस औरत से उस समय ही परिचय हुआ था, जब वह मेरे साथ पढ़ती थी। मुझको यह भी पता है कि नवाब के लड़के के साथ उसकी शादी हुई थी और फिर तलाक भी हुआ था। इसके बाद उसका विवाह हुआ सुना नहीं। यह तो भगवान् ही जान सकता है कि उसके पेट में किसका बच्चा था। यह भी पता नहीं कि नवाब साहब उसको क्यों हस्पताल में लाये थे और फिर क्यों उसको मरवाने का यत्न कर रहे थे।’’

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