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उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
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इन्द्रनारायण और रजनी की मेडिकल कॉलेज की अन्तिम परीक्षा में केवल दो मास शेष रह गये थे। इन्द्रनारायण की रुचि चीरा-फाड़ी के कार्य में भी थी। इस कारण वह परीक्षा के पश्चात् भी डॉक्टर भाटिया के अधीन हस्पताल में कुछ और अभ्यास करने का विचार रखता था। डॉक्टर भाटिया उसके लिए वजीफे की बात विचार रहा था, जिससे वह किसी यूरोपियन देश में जाकर सर्जरी का कुछ अधिक ज्ञान प्राप्त कर सके।
रजनी ने ‘मिस वाइफरी’ के कार्य में विशेष योग्यता प्राप्त करने का यत्न किया था। इसकी विशेषज्ञ डॉक्टर सैंडरसन रजनी के कार्य से बहुत प्रसन्न थी। वह उसका नाम हाउस सर्जन की एक जगह के लिए अधिकारियों को भेज चुकी थी। इन्द्र व रजनी दोनों यत्न कर रहे थे कि परीक्षा में अच्छे अंक पाकर उत्तीर्ण हो सकें, जिससे उनके प्रोफेसरों की आशायें पूर्ण हो सकें। इन दिनों वे अपना अधिकतर समय हस्पताल में व्यतीत कर रहे थे।
एक दिन डॉक्टर रजनी को देख आश्चर्य से उसका मुख देखने लगी। रजनी ने उसको अन्यमनस्क भाव में खड़े देखा तो पूछ लिया, ‘‘डॉक्टर! क्या बात है? मुझको कुछ कहना चाहती हैं?’’
‘‘मैं विचार कर रही थी कि बताऊँ अथवा नहीं। भला यह बताओ, एक दिन बूढ़े नवाब ऐंग्लों-इण्डियन औरत को लेकर आये थे और तुम उस औरत को जानती थीं न?’’
‘‘हाँ डॉक्टर, मुझे अच्छी तरह याद है। नवाब हुसैन बाराबंकी के एक जमींदार हैं। वह औरत मेरी सहपाठिन थी। हमने इण्टरमीडिएट की परीक्षा एक साथ ही दी थी। क्या बात है उसकी?’’
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