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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


ऐना के विषय में लिखा था–वह एक बदकार औरत है। वह पेशेवर रण्डी है। उसको जमींदारी से कुछ नहीं मिलेगा। उसको केवल वही दो सौ रुपया महीना मिलता रहेगा, जो कचहरी ने उसके तलाक के समय निश्चित किया था।

वसीयत पढ़कर दोनों एक-दूसरे का मुख देखते रह गये।

ऐना ने कह दिया, ‘‘इस बूढ़े खूसट ने मुझको आवारा और पेशेवर रण्डी कहा है। मैं इसको मार डालूँगी। बदमाश कहीं का। इसने ही मुझको अपनी मिस्ट्रेस बनाने के लिए भारी लोभ दिये थे और अब किसी अन्य पर नजर पड़ जाने से मुझको बदकार कहना आरम्भ कर दिया है।’’

अनवर ने कहा, ‘‘ऐना! इस गुस्से की नुमाइश से कुछ हल नहीं हो सकता। इस मुसीबत से नजात मिलनी चाहिये।’’

‘‘देखिये!’’ ऐना ने तुरन्त कह दिया, ‘‘मैं इस वसीयत को होने नहीं दूँगी। आप मेरे साथ कंधे-से-कंधा मिलाकर खड़े रहिये।’’

‘‘इसके लिये तो हम कसम खा चुके हैं। ‘फिफ्टी-फिफ्टी’ के अर्थ तो यही हैं कि हम पुनः हसबैण्ड वाइफ रहेंगे।’’

‘‘और दूसरी बेगमों का क्या होगा?’’

‘‘जो आउट ऑफ बडलौक बाइव्ज (अविवाहित पत्नियों) का होता है।’’

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