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उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
अगले दिन अनवर ठीक दस बजे प्रातः ऐना की कोठी पर आया। वकील वसीयत की नकल दे, अपनी बेईमानी का मूल्य एक हजार लेकर बाहर निकला तो अनवर को ताँगे से उतरते देख भौचक्का हो उसका मुख देखता रह गया। उसने अपने को सँभालकर अनवर से पूछ लिया, ‘‘आपका काम तैयार है। आप किस वक्त आयेंगे?’’
अनवर ने अभी वकील से झगड़ना उचित नहीं समझा। उसने कह दिया, ‘‘इन बेगम साहिबा के कुछ काम है। यहाँ से फारिग होते ही आपसे मिलने की कोशिश करूँगा। आप मेरी चीज महफूज रखिएगा। मैं जरूर मिलने आऊँगा।’’
वकील गया तो अनवर और ऐना दोनों वसीयत पढ़ने लगे। वसीयत अंग्रेजी में लिखी थी। इसके कारण ऐना पढ़ती जाती थी और अनवर सुन रहा था।
वसीयत में लिखा था कि जमींदारी का वारिस अनवर का लड़का सरवर होगा। सरवर के अल्पवयस्क रहने तक उसकी दादी बेगम फातिमा उसकी सरपरस्त होगी। जब तक वह सरपरस्त रहेगी, पाँच सौ रुपया महीना इसका मुआवजा पाती रहेगी। इसके अलावा भी दो सौ रुपया उसको बेगम होने की वजह से मिलेगा। अगर सरवर हुसैन के वयस्क होने से पहले ही बेगम का देहान्त हो जाये तो रियासत कौर्ट-ऑफ-वार्ड्स के प्रबन्ध में चली जायेगी।
अनवर के विषय में लिखा था कि वह नालायक सिद्ध हुआ है। उसको और उसकी बीवियों में से हर एक को दो-सौ रुपया महीना मिलेगा, जो उनके जीवन-काल तक रहेगा। इसी प्रकार नवाब साहब की अपनी छोटी तीनों बेगमों के लिये भी दो-दो सौ रुपया निश्चित किया गया था। अनवर के बच्चों के लिये जब तक कि वे वयस्क नहीं हो जाते, पचास-पचास रुपया वजीफा निश्चित किया गया था।
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