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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


ऐना ने ही नवाब साहब को वसीयत करने पर बल दिया था। वे लिखने के लिये तैयार हो गये, मगर उनके मुख से निकल गया कि सरवर की सरपरस्त बेगम फातिमा बनेगी तो ऐना को शक हो गया कि नवाब साहब धोखा देने वाले हैं। इससे वह परेशान थी। उसने अपनी बदनामी सही थी, केवल अमीराना जिन्दगी बसर करने के लिये। अब उसकी आशा विलीन होती देख, वह सागर में अकेले आदमी की तरह छटपटाती अनुभव कर रही थी। अब अनवर को पा उसके मन में खयाल आया कि यदि इससे बन सके तो अभी नवाब साहब को छकाया जा सकता है।

अनवर की योजना के अनुसार ऐना ने अपनी गाड़ी निकाली और दोनों अनवर को मौलाना मित्र वहीद अहमद के घर जा पहुँचे। अनवर उससे कुरान ले आया। दोनों वापस हिवैट रोड वाली कोठी पर आ गये। ऐना उसको एक कमरे में ले गयी। वहाँ मरियम की मूर्ति बनी थी। उस मूर्ति के सामने बैठकर ऐना ने कसम खाई। उसने कहा, ‘‘पवित्र माँ के सामने मैं सत्य हृदय से कसम खाकर कहती हूँ कि मैं अपने हकीकी खाविन्द अनवर हुसैन से कोई बात छिपाकर नहीं रखूँगी और प्रत्येक बात में हानि या लाभ की आधे-आधे की पत्तीदार रहूँगी।’’

मरियम की तस्वीर के चरणों में पड़ी हुई अंजील को उसने उठाया, चूमा और माथे से लगाकर उसने कहा, ‘‘मैं अच्छी हूँ या बुरी हूँ, मगर अपनी इस पवित्र ‘मदर’ के सामने झूठ नहीं बोल सकती।’’

इसी प्रकार के शब्दों में अनवर ने भी कुरान के ऊपर हाथ रखकर कसम खाई। दोनों उठ खड़े हुए। एकाएक दोनों कसकर गले मिले और बोल, ‘‘अब हम कभी जुदा नहीं होंगे।’’

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