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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


‘‘आप पर एतबार नहीं रहा। आपने पहले धोखा दिया है।’’

‘‘अब कुरान शरीफ पर हाथ रख, कसम खाकर वायदा करता हूँ कि दगा नहीं करूँगा।’’

ऐना कुछ देर विचार कर बोली, ‘‘तो आइये, ‘फिफ्टी-फिफ्टी’ खर्च और फायदे के पत्तीदार हो सकते हैं।’’

‘‘मंजूर है।’’ अनवर ने कह दिया।

‘‘तो पाँच सौ लाइये और कल तीन बजे आकर वसीयत की नकल देख जाइये। आगे की बात फिर विचार कर लेंगे।’’

‘‘नहीं।’’ अनवर ने कहा, ‘‘आगे-पीछे की बात छोड़ो। हम पूरी जिन्दगी-भर के लिये कसम खाते हैं। ‘फिफ्टी-फिफ्टी’ जिन्दगी-भर।’’

‘‘यह भी मंजूर है।’’ ऐना ने कह दिया, ‘मगर कसम खाइये! मैं तो अभी ही ‘मदर मरियम’ के सामने चलकर कसम खा सकती हूँ।’’

‘‘तो मैं भी कुरान शरीफ को अभी ला सकता हूँ। अपनी गाड़ी निकालो। मेरे एक मौलाना दोस्त हैं। उनके यहाँ चलकर पाक किताब ले आते हैं और दोनों इकट्ठे कसम खा लेते हैं।’’

‘‘ऐना को यह तजवीज पसन्द थी। उसको एक कठिनाई अनुभव हो रही थी। वकीलों और कचहरी के साथ उसका वास्ता पड़ने वाला था और वह नहीं जानती थी कि बिना किसी पुरुष की सहायता के वह किस प्रकार इस समस्या को सुलझा सकेगी।

जब से उसको नवाब साहब से गर्भ ठहर गया था, उसके पिता और भाई ने उससे बोलना बन्द कर दिया था। वह नवाब साहब पर बहुत भरोसा रखती थी, मगर ऑपरेशन होने के बाद तो उन्होंने भी उससे मेल-जोल कम कर दिया था।

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