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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव

9

अनवर ने ड्राइंग-रूम में पहुँच कर सोफा पर बैठते हुए कहा, ‘‘ऐना, यह क्या हो रहा है? क्या तुम भी इस साजिश में शामिल हो?’’

‘‘किस साजिश में?’’

‘‘यही जमींदारी के असली वारिस को बरतरफ करने और उसकी जगह पर एक नाबालिग को वारिस बनवाने में।’’

‘‘यह आपको किसने बताया है?’’

‘‘किसी ने भी बताया हो। क्या यह गलत है?’’

‘‘इसमें इतना गलत है कि मैं इस साजिश में शामिल हूँ।’’

‘‘तो कौन है जो इस सबकी बिना में है?’’

‘‘आपने मेरे खिलाफ साजिश की है और मेरी मिट्टी पलीत करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। किसी ने आपके खिलाफ साजिश की है। वह कौन है, इसका पता कल चलेगा। वकील साहब ने एक हजार रुपया लेकर वसीयत दिखाने का वायदा किया है।’’

‘‘अच्छा! बड़ा बेईमान है यह वकील! इसने मुझसे भी डेढ़ हजार लेकर वसीयत दिखाने का वायदा किया है।’’

‘‘तो इसकी तो पाँचों घी में हो गयी हैं।’’

‘‘यही मालूम होता है। देखो ऐना! अगर तुम मुझसे मिल जाओ तो हम अभी भी अपनी हालत सुधार सकते हैं।’’

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