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उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
ऐना की कोठी के बाहर मिस्टर सक्सेना की गाड़ी खड़ी थी। अनवर को यह विश्वास हो गया कि ऐना ही इस सबमें करण-कारण है। वह वहाँ से लौट आना चाहता था, मगर वह आ नहीं सका। उसी वक्त ऐना और सक्सेना कमरे से बाहर आ गये। दोनों ने अनवर को देखा तो एक क्षण के लिए दोनों घबराये। परन्तु तुरंत ही सम्भलकर ऐना ने कह दिया, ‘‘आइये नवाब साहब! कैसे आना हुआ है?’’
‘‘मैं समझता हूँ कि गलत वक्त पर आया हूँ। मुझको मालूम नहीं था कि वकील साहब आपसे मुलाकात कर रहे हैं।’’
कुछ देर अनवर चुप रहकर पुनः बोला, ‘‘अगर आपको इस समय इनसे कुछ काम है तो मैं फिर आ जाऊँगा।’’
‘‘इनसे काम समाप्त हो गया है। आप आइये।’’
ऐना ने सक्सेना से हाथ मिलाया और उनको विदा करते हुए कहा, ‘‘कल ठीक नौ बजे सवेरे नाश्ते के वक्त तशरीफ लाइएगा।’’
‘‘ठीक है।’’ इतना कह एक अर्थभरी दृष्टि से सक्सेना ने ऐना की ओर देखा और फिर कोठी से निकलकर अपनी मोटर में सवार हो चल दिया।
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