उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
‘‘मैं उसको बोर्डिंग हाउस में भरती करा दूँगा। घर के सब प्रकार के खर्चे बन्द कर उसकी शिक्षा पूर्ण होगी।’’
‘‘परन्तु अब राधा ग्यारह वर्ष की हो चली है। उसका विवाह हो जाना चाहिये।’’
‘‘कोई लड़का ढूँढो। भगवान् की कृपा से विवाह भी हो जायेगा।’’
‘‘उसकी सगाइयाँ आने लगी हैं। आप स्वीकृति दे तो मैं लड़कों के विषय में जाँच-पड़ताल कराऊँ। इन्द्र की मौसी साधना ने अपने सम्बन्धियों में एक लड़के के विषय में लिखा है। लड़का लखनऊ में रहता है और सीतापुर के एक पंडित ज्ञानेन्द्रदत्त का लड़का है। आप कहें तो जाकर देख आऊँ?’’
‘‘आजकल तो स्कूल-कॉलेजों में छुट्टियाँ हैं। सीतापुर ही जाना पड़ेगा।’’
‘‘जी नहीं। उसके पिता तथा भाई लखनऊ में ही रहते हैं। लड़के का भाई पिता के साथ काम करता है, और सुना है, खाता-पिता परिवार है।’’
‘‘ये सब व्यर्थ की बातें हैं। देखना तो यह है कि वह ब्राह्मण की सन्तान ही है और कुछ धर्म-कर्म भी जानता है।’’
‘‘यह तो पता नहीं। साधना ने लिखा है कि लड़का सुन्दर और स्वस्थ है, समझदार है, अच्छे नम्बर लेकर पास हुआ है।’’
‘‘तुम साधना को लिखो कि वह उनके घर जाकर पता करे कि उनका रहन-सहन कैसा है?’’
‘‘एक बात साधना ने और लिखी है। वह यह कि सब तो ठीक है, परन्तु लड़का व्यापार करना चाहता है।’’
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