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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


‘‘क्या व्यापार करना चाहता है?’’

‘‘कहिये तो पता किया जाये?’’

‘‘पहले लड़के के विषय में जानकारी प्राप्त करो। पीछे दूसरी बातों के विषय में जान लेंगे।’’

इस वार्तालाप से इन्द्रनारायण दो बातों को समझ गया–एक तो यह कि पिता उसकी शिक्षा को पसन्द नहीं करता। केवल स्नेहवश ही उसकी पढ़ाई पर व्यय कर रहा है। दूसरे यह कि राधा के विवाह के लिये दहेज भी देना पड़ेगा और पिताजी उस विषय में विचार करने को तैयार हैं।

वह स्वयं तो दहेज की बात करना पाप समझता था। उसको विदित था कि उसके विवाह के समय इस प्रकार की कोई बात नहीं हुई थी। उसकी ससुराल से कुछ अधिक आया भी नहीं था। इस पर भी उसके माता-पिता की ओर से किंचित्-मात्र भी गिला नहीं किया गया था। उसकी ससुराल वाले कुछ अधिक दे भी नहीं सकते थे।

इन दो बातों के अतिरिक्त एक अन्य अत्यन्त मधुर बात उसकी माँ ने कही थी। उसने कहा था कि उसकी पत्नी इतनी सुन्दर है कि कोई भी पति उसको छोड़ नहीं सकता।

इस सूचना से उसके मन में पत्नी को देखने की लालसा जाग उठी। वह मन में योजनाएँ बनाता हुआ कि कैसे वह उसको देख सकता है, खाट पर रात-भर करवटें लेता रहा।

दिन व्यतीत होते गये। इसके पश्चात् पिता-पुत्र में पुनः धर्म-चर्चा नहीं हुई। इन्द्र ने भी पुनः कभी पिताजी के कथन पर संशय नहीं किया और पिता ने भी उसके विश्वासों पर कभी चर्चा नहीं चलाई।

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