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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


‘‘तो यह विष किसने दिया है?’’

‘‘बात यह है कि मैं कभी-कभी नवाब साहब के गाँव वाले मकान में रहने के लिए जाया करती हूँ। वहाँ मैंने स्कॉच-व्हिस्की की एक दर्जन बोतलें रखी हुई हैं। कल नवाब साहब उनमें से दो बोतलें ले आए थे। वे मुझसे मिलकर शराब पीने की हठ करने लगे। मैं राजी हुई मगर आधे मन से इस कारण मैंने बहुत कम पी थी, परन्तु नवाब साहब ने आधी से अधिक बोतल पी डाली।

‘‘अभी हम बातचीत कर ही रहे थे कि नवाब साहब बात करते-करते बीच में चुप कर जाते और मेरा चेहरा देखने लगते। मैंने उनसे पूछा तो वह बोले, ‘‘मुझको कुछ ऐसा लगता है कि मेरा दिमाग काम करता-करता रुक जाता है।’’

‘‘मैंने समझा कि नवाब साहब कुछ अधिक पी गए हैं, अतः मैंने एक सोड़े की बोतल खोलकर उनको पीने को कहा। उन्होंने सोड़े की बोतल नहीं पी, बल्कि और शराब पीने लगे।

‘‘इस समय मेरा सिर भारी होने लगा। मैंने सोड़े की बोतल खुद पी डाली। उसी समय मुझको कै हो गयी। कै से नीले रंग का पानी निकला। मुझको उसी समय संदेह हो गया कि शराब में कुछ मिलाया गया है। मैंने घूमकर देखा तो नवाब साहब अचेत पड़े थे। मैंने उनके माथे पर हाथ लगाया तो ठंडा हो रहा था। मैं घबरा गयी और तुरन्त मैंने डॉक्टर को टेलीफोन कर दिया। वही डॉक्टर, जो कल मेरे साथ एम्बुलैंस गाड़ी में बैठा था, आ गया। उसने आते ही मुझको तो कै आने की दवाई दे दी। साथ ही नवाब साहब की हालत खराब देखकर हस्पताल में एम्बुलैंस के लिये और पुलिस को टेलीफोन कर दिया।

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