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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


थानेदार ने बयान एक कागज पर नोट कर दिया और रजनी से उसका पता पूछकर लिख लिया और उसे छुट्टी दे दी।

थानेदार स्वयं हस्पताल चला गया। रजनी और इन्द्र घर जाने के लिये किसी इक्के की प्रतीक्षा करने लगे। इस समय ताँगे में अनवर एक पुलिस कॉन्सटेबल के साथ आया और रजनी तथा इन्द्र से पूछने लगा, ‘‘क्या हुआ है यहाँ?’’

‘‘नवाब साहब और ऐना को विष दे दिया गया है। नवाब साहब का तो देहान्त हो गया है और ऐना हस्पताल में ले जाई गयी है।’’

‘‘तुम लोग उस समय वहाँ थे?’’

‘‘नहीं। हम उस समय यहाँ आये थे जब ऐना को हस्पताल ले जाया जा रहा था।’’

अनवर गम्भीर भाव बना, गर्दन झुकाए ताँगे में बैठकर पुलिसमैन के साथ ही हस्पताल चला गया।

अगले दिन रजनी हस्पताल में ऐना को देखने के लिए चली गयी। वह प्रसन्न-वदन एक आरामकुर्सी पर बैठी थी। रजनी को देखकर उसने उठकर उसे गले लगा लिया। रजनी इस उल्लास के प्रदर्शन का कारण नहीं समझ सकी।

ऐना ने उसको अपने सामने एक स्टूल पर बिठाकर कहा, ‘‘रजनी! तुमने मेरी जान बचा ली है। मैं तुम्हारी बहुत ही शुक्रगुजार हूँ। अगर तुमने अपना बयान न दिया होता तो आज मैं पुलिस द्वारा पकड़ी और हवालात में डाल दी गयी होती। तुम्हारे बयानों का डॉक्टर सैंडरसन ने समर्थन किया है।’’

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