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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


अगले दिन शिवदत्त ने सबको बता दिया कि वह नैनीताल जा रहा है।

साधना ने इस दिन उठते ही ज्ञानेन्द्रदत्त के घर जाकर बता दिया कि उसका जीजा रामाधार अपने पूरे परिवार के साथ लखनऊ आया हुआ है और रायसाहब रमेशचन्द्र सिन्हा की कोठीं पर ठहरा हुआ है।

ज्ञानेन्द्रदत्त ने उसी समय अपनी पत्नी को बुलाया और राय की। तत्पश्चात् अपनी पत्नी तथा लड़के शिवकुमार को लेकर रायसाहब की कोठी पर जा पहुँचा।

जब वे वहाँ पहुँचे तो राधा लक्ष्मी और सरोज के पास बरामदे में बैठकर अल्पाहार ले रही थी। लक्ष्मी ने उसे पूछा, ‘‘आइये। किनसे मिलने आये हैं?’’

शर्मिष्ठा ने राधा की ओर देखकर कह दिया, ‘‘इस लड़की की माताजी से।’’

सब विस्मय करने लगीं तथा आने वालों का मुख देखने लगीं। राधा स्मरण करने की चेष्टा करने लगी कि उसने इस औरत को कहाँ और कैसे तथा कब देखा है। उसे याद आया तो वह कूदकर खड़ी हो गयी और बोली, ‘‘शर्मिष्ठा मौसी?’’

‘‘हाँ-हाँ, राधा! वही हूँ। पहचान लिया न? अब अपनी माताजी से कहो कि मैं मिलने आयी हूँ।’’

राधा ने हाथ जोड़कर प्रणाम किया और खाना छोड़ भीतर चली गयी। रजनी के विवाह के कारण बहुत-से मेहमान कोठी में ठहरे हुए थे। इस कारण ज्ञानेन्द्रदत्त आदि को वहीं कुर्सियाँ लगवाकर बिठा दिया गया।

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