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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


महावीर समझ गया कि पिताजी को रिटायर होने पर विवश किया गया है। अतः इस समाचार से वह समझा कि अफसरी की बू निकल गई है। कदाचित् सेक्रेटरी ने डाँटा-डपटा भी हो। यह तो सुनने में आ रहा था कि उसके पिता दफ्तर में काम नहीं करते और अधिकारी भी उनसे प्रसन्न नहीं हैं।

महावीर ने पूछ लिया, ‘‘यह छुट्टी कब से आरम्भ होने वाली है?’’

‘‘कल से ही। मैंने प्रार्थना-पत्र लिखा तो तुरन्त स्वीकार कर लिया गया। यहाँ तक कि मेरे स्थान पर श्री सन्तोष चौधरी की नियुक्ति भी हो गयी है। आज मैं उसको चार्ज दे आया हूँ।’’

महावीर ने तुरन्त कह दिया, ‘‘मेरा विचार है कि आप पहाड़ पर अपने स्वास्थ्य-सुधार के लिये चले जाइये।’’

‘‘सो क्या तुम भी समझते हो कि मैं पागल हो गया हूँ?’’

‘‘नहीं, यह बात नहीं। मैं तो यह सोच रहा हूँ कि बाईस वर्ष तक नौकरी करने के पश्चात् आराम करने का आपका हक है।’’

‘‘सेक्रेटरी ने मुझको यही कहा था कि मैं किसी पहाड़ पर जाकर अपना दिमाग सही करूँ। मैंने पूछा, ‘क्या इस समय सही नहीं?’ तो सेक्रेटरी ने उत्तर दिया, ‘नहीं। तुम बिलकुल पागल हो गये हो।’ ’’

‘‘नहीं-नहीं, पिताजी! वह बकवास करता है। आप सब प्रकार से ठीक हैं। इस पर भी मेरी राय है कि आप नैनीताल अथवा मसूरी चले जाइये।’’

‘‘अच्छी बात है। तुम्हारी माँ से राय करूँगा।’’

महावीर समझ रहा था कि पागलपन अथवा जो कुछ भी रहा हो, उतर रहा है और बहुत कुछ उतर चुका है।

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