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उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
शिवदत्त और उसके परिवार के लोग इन्द्र को विदा कर घर लौट आये। घर आकर भी किसी को यह पूछने का साहस नहीं हुआ कि पिताजी स्टेशन जाने के लिये कैसे राजी हो गये थे।
परन्तु जब भोजन करने बैठे तो बात प्रकट हो गयी। शिवदत्त ने बताया, ‘‘आज प्रातःकाल समाचारपत्र में पढ़ा था कि रायसाहब रमेशचन्द्र सिन्हा की लड़की रजनी का विवाह मैडिकल कॉलेज के प्रोफेसर आनन्द से हो गया है। उसी समाचार के नीचे इन्द्र का फोटो छपा था। उसके नीचे लिखा था–इन्द्रनारायण, दुरैया गाँव का रहने वाला, मेडिकल कॉलेज की फाइनल परीक्षा में प्रथम रहा है। यह लड़का यू० पी० सरकार से तीन सौ पौण्ड वार्षिक छात्रवृत्ति पाकर आगे पढ़ने के लिए बियाना जा रहा है।’’
शिवदत्त ने आगे कहा, ‘‘जब मैंने यह समाचार तुम्हारी माँ को सुनाया तो वह रोने लगी। मैंने रोने का कारण पूछा तो बोली, ‘‘उससे मिलने को जी करता है।’ इस पर मैंने कह दिया, ‘वह रात को स्टेशन पर उसे विदा करने के लिए जा सकती है।’ मेरे अपने जाने का विचार तो तुमको जाने के लिये तैयार देखकर हुआ था। मैं चाहता था कि देखूँ कौन-कौन विदा करने आया है।
‘‘रजनी विदा करने नहीं आयी?’’
उत्तर साधना ने दिया, ‘‘वह अपने पति के घर गयी है। उसकी सास कह गयी थी कि बहू रात को आ नहीं सकेगी। उन्होंने प्रोफेसर साहब के मित्रों और सम्बन्धियों को भोज दिया हुआ है।’’
सब पिताजी के जाने पर अब विस्मय नहीं कर रहे थे। विस्मय की बात तो अब यह थी कि वे पहले इन्द्र की बात करते समय कभी भी इतने शांत नहीं रहते थे। इस बात का रहस्य भी खुल गया। शिवदत्त ने भोजन समाप्त होते-होते बताया, ‘‘मैंने नौकरी से रिटायर होने से पहले दो वर्ष की छुट्टी ले ली है। मेरी इतनी छुट्टी जमा थी।’’
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