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उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
‘‘भगवान् उसको भी किनारे लगायेगा। वैसे तो शारदा के मामा का लड़का है। देखा भी है। कुछ मन नहीं माना। कानपुर में जजी में नौकर है। राधा के पिता उससे कोई हाँ-ना नहीं कर रहे। रमाकान्त के लिये शारदा के चाचा की लड़की से बातचीत हो रही है। उसमें तुम्हारे जीजा जी रुचि रखते हैं। परन्तु राधा के विवाह के बाद ही रमाकान्त के विवाह की बात होगी। वास्तव में तुम्हारे जीजा के कहने पर ही शारदा के मामा के लड़के की बात हुई है।’’
‘‘दीदी! कहो तो ज्ञानेन्द्रदत्त जी के लड़के की बात फिर चलाऊ?’’
‘‘अब क्या करता है वह?’’
‘‘वह अब सीप के बटनों की एक मशीन लगाये हुए है। बहुत दूर-दूर तक उसका माल जाने लगा है।’’
‘‘तुम्हारे जीजाजी से बात करूँगी।’’
‘‘ऐसे नहीं दीदी! ज्ञानेन्द्रदत्त और उसकी पत्नी कई बार पूछ चुके हैं। काकी को राधा बहुत पसन्द है। वह चाहती है कि पुनः यत्न करें। तुमने यदि कल यहाँ रहना हो तो उनको कह देती हूँ कि वे आपसे मिल लें।’’
‘‘हम कल दो बजे की गाड़ी से जाने का विचार रखते हैं।’’
‘‘मैं उनको बता दूँगी। आगे वे जानें और उनका काम जाने। रायसाहब की कोठी पर ही रहोगी न?’’
‘‘हाँ।’’
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